१.जो कार्य दूसरों के अधीन रहकर ही किये जा सकते हैं उनको पूरी तरह त्याग देना ही श्रेयस्कर है, तथा अपने अधीन सभी कार्यों का अनुष्ठान पूरे प्रयत्न करना चाहिए।
२.जो कुछ दूसरे के अधीन है, वह सब दु:ख है और जो अपने वश में है वही सुख है। यही सुख-दुख के लक्षण हैं।
३.जिस कार्य से मन की शांति तथा अंतरात्मा को प्रसन्नता प्राप्त हो, उसे करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिऐ, परन्तु जिस कार्य से मन में अशांति होती है उसे त्याग देना ही अच्छा है।
४.परमात्मा की सता में अविश्वास रखना, वेदों की निंदा करना, देवताओं की अवज्ञा, शत्रुता-विरोध, पाखण्ड, अंहकार, क्रोध करना तथा स्वभाव में उग्रता होना ऐसे दोष हैं, जिनका त्याग करना चाहिऐ।
५.किसी के द्वारा अपराध हो जाने पर क्रोधवश उसे पीटने के लिए डंडा नहीं उठाना चाहिए, व्यक्ति को केवल अपने पुत्र या शिष्य को शिक्षित करने की मर्यादा निभाने के लिए ही उसे पीटने का अधिकार है।
फेसबुक तथा ट्विटर पर जारी हिन्दी कवितायें
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*मुझसे मुंह फेर गये अच्छा किया*
*मिलते तो दोनों का समय बर्बाद होता*
*विवाद के डर से भी बचे*
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*रसहीन गंधहीन रूपहीन शब्दहीन*
*स्वादहीन हैं जिंदगी...
3 years ago
3 comments:
बहुत अच्छी बातें पढने को मिली....धन्यवाद।
सारगर्भित चिंतन .../
हमेशा की तरह बढ़िया चिंतन।
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