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Friday, October 10, 2008

रहीम सन्देश: प्रीति और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे वृद्धि होती है

रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि
सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि

कविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर उधर कूदने फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है

यही रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय
बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय


कविवर रहीम कहते हैं कि प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे ही वृद्धि होती है। इनका क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ होती है क्योंकि यह सभी आदमी जन्म के साथ नहीं ले आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-यह मानवीय स्वभाव है कि वह अपनी जिससे प्रीति करना चाहता है उससे तत्काल ही वैसी आशा करता है। उसी तरह वह अगर कोई सार्वजनिक कार्य करता है तो तत्काल अपनी प्रतिष्ठा बढ़ते देखना चाहता है जबकि वह स्वयं न तो किसी को तत्काल प्रीति करता है और न ही किसी के कार्य को तत्काल सराहता है। जो पुरुष मानवीय स्वभाव के ज्ञानी हैं वह तो धीरज धारण करते हैं पर जो अज्ञानी हैं वह तत्काल परिणाम न मिलने से निराश भी जल्दी हो जाते हैं। जीवन में धैर्य का बहुत महत्व है। खासतौर से जब दूसरे मनुष्यों में अपने लिये प्रीति या सम्मान पैदा करना हो तो ऐसे धैर्य की आवश्यकता होती हैं। एक या दो काम से न तो लोग प्रीति करते हैं और प्रतिष्ठा मिलती है। इसके लिये आवश्यक है कि सतत समाज हित का काम किया जाये और यह तभी संभव है जब हमारे अंदर धैर्य हो।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दयोग सारथी-पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

seema gupta said...

जब हमारे अंदर धैर्य हो।

'sach kha hai, magar patience hotta khan hai ajkul, kitnee he koshish kr lain, or maire ander to bilkul bhee nahee hai.."

Regards

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