समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, October 14, 2008

संत कबीर सन्देश:मसखरों को मिलता है साधू जैसा सम्मान

कबीर कलियुग कठिन हैं, साधू न मानै कोय
कामी क्रोधी मसखरा तिनका आदर होय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अब इस घोर कलियुग में कठिनाई यह है कि सच्चे साधू को कोई नहीं मानता बल्कि जो कामी, क्रोधी और मसखरे हैं उनका ही समाज में आदर होने लगा है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अगर हम कबीरदास जी के इस कथन के देखें तो हृदय की पीडा कम ही होती है यह सोचकर कि उनके समय में भी ऐसे लोग थे जो साधू होने के नाम पर ढोंग करते थे। हम अक्सर सोचते हैं कि हम ही घोर कलियुग झेल रहे हैं पर ऐसा तो कबीरदास जी के समय में भी होता था। धर्म प्रवचन के नाम पर तमाम तरह के चुटकुले सुनकर अनेक संत आजकल चांदी काट रहे हैं। कई ने तो फाईव स्टारआश्रम बना लिए हैं और हर वर्ष दर्शन और समागम के नाम पर पिकनिक मनाने तथाकथित भक्त वहाँ मेला लगाते हैं। सच्चे साधू की कोई नहीं सुनता। सच्चे साधू कभी अपना प्रचार नहीं करते और एकांत में ज्ञान देते हैं और इसलिए उनका प्रभाव पड़ता है। पर आजकल तो अनेक तथाकथित साधू-संत चुटकुले सुनाते हैं और अगर अकेले में किसी पर नाराज हो जाएं तो क्रोध का भी प्रदर्शन करते हैं। उनके ज्ञान का इसलिए लोगों पर प्रभाव नहीं पड़ता भले ही समाज में उनका आदर होता हो।
अनेक कथित संत और साधु अपने प्रवचनों के चुटकलों के सहारे लोगों का प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। लोग भी चटखारे लेकर अपने दिल को तसल्ली देते हैं कि सत्संग का पुण्य प्राप्त कर रहे हैं। यह भक्ति नहीं बल्कि एक तरह से मजाक है। न तो इससे मन में शुद्धता आती है और न ज्ञान प्राप्त होता है। सत्संग करने से आशय यह होता है कि उससे मन और विचार के विकार निकल जायें और यह तभी संभव है जब केवल अध्यात्मिक ज्ञान की चर्चा हो। इस तरह चुटकुले तो मसखरे सुनाते हैं और अगर कथित संत और साधु अपने प्रवचन कार्यक्रमों में सांसरिक या पारिवारिक विषय पर सास बहु और जमाई ससुर के चुटकुले सुनाने लगें तो समझ लीजिये कि वह केवल मनोरंजन करने और कराने के लिये जोगी बने है। ऐसे में न तो उनसे लोक और परलोक सुधरना तो दूर बिगड़ने की आशंका होती है।
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दयोग सारथी-पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

seema gupta said...

कबीर कलियुग कठिन हैं, साधू न मानै कोय
कामी क्रोधी मसखरा तिनका आदर होय
"Good thought"

Regards

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें