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Saturday, October 11, 2008

भृतहरि शतकः काम पर नियंत्रण करने वाले विरले ही वीर होते हैं

मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः केचित्प्रचण्डमृगराजवधेऽपि दक्षाः।
किन्तु ब्रवीमि बलिनां मुरतः प्रसह्य कंदर्पदर्पदलने विरला मनुष्याः

हिंदी में भावार्थः इस संसार में मदमत्त हाथियों पर नियंत्रण करने वाले अनेक योद्धा हैं। ऐसे अनेक वीर है जो शेर से लड़कर उसे पराजित कर देते हैं पर कोई ऐसा विरला ही मनुष्य होता है जो काम के मद पर नियंत्रण कर पाता हैं। काम में इतनी शक्ति है कि वह कई वीरों और ज्ञानियों को अपने पथ से विचलित कर देता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अनेक कथित साधु और संत मनुष्य को अपनी काम भावना पर नियंत्रण करने का उपदेश देते हैं पर वह स्वयं ही उसके वशीभूत होते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने आते हैं जब संतों पर काम के वशीभूत होकर दुष्कृत्य करने के समाचार आते हैं। काम पर निंयत्रण का उपाय तो भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान में है अन्य किसी में नहीं पर इसके बावजूद कथित रूप से ऐसे अनेक कथित महापुरुष हुऐ हैं जिन्होंने हमेशा काम पर निंयत्रण का संदेश दिया पर यह उनका केवल बाहरी आवरण ही था जबकि उनका जीवन ही काम के वशीभूत होकर पूरा जीवन गुजारा।

स्त्रियों को अपने गुरु और सम्मानीय लोगों के प्रति अधिक सर्तक रहना चाहिये क्योंकि काम पर नियंत्रण करने की ताकत विरलों में होती है। स्त्रियों और उनके परिवार वालों को हमेशा ही ऐसे ढोंगी और पाखंडी गुरुओं से दूर रहना चाहिये जो बात तो अध्यात्म ज्ञान की करते है पर उनकी देह में काम और कामनाओं का वर्चस्व रहता है। यह बात समझ लेना चाहिये कि बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो काम पर निंयत्रण कर समाज का हित कर पाते हैं। अतः जब तक परख न लें किसी पर विश्वास न करें।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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