1. रघुनंदन! क्या तुम्हारी आय अधिक और व्यय बहुत कम है? तुम्हारे खजाने का धन अपात्रों क हाथ में तो नहीं चला जाता।54
2.कभी ऐसा तो नहीं होता कि कोई मनुष्य किसी श्रेष्ठ निर्दोष और शुद्धात्मा पुरुष पर भी दोष लगा दे तथा शास्त्रज्ञान में कुशल विद्वानों द्वारा उसके विषय में विचार कराये बिना ही लोभवश उसे आर्थिक दंड दे दिया जाता हो। 56
3.नास्तिकता,असत्य भाषण,क्रोध,प्रमाद,दीर्घसूत्रता,ज्ञानी पुरुषों का संग न करना,आलस्य,नेत्र अति पांचों इंद्रियों के वशीभूत होना,राजकार्यों में अकेले ही विचार,प्रयोजन को न समझने वाले विपरीतदर्शी मूर्खों से सलाह लेना, निश्चित किये हुए कार्यो का शीघ्र प्रारंभ न करना, गुप्त मंत्रणा को सुरक्षित न रखकर प्रकट कर देना,मांगलिक आदि कार्यों का अनुष्ठान न करना तथा सब शत्रुओं पर एक ही साथ आक्रमण करना-यह राजा के चैदह दोष हैं। तुम इन दोषो का सदा परित्याग करते हो न! 65-67
4.इस प्रकार धर्म के अनुसार दण्ड धारण करने वाला विद्वान राजा प्रजाओं का पालन करके समूची पृथ्वी को यथावत् रूप से अपने अधिकार में कर लेता है तथा देहत्याग करने के पश्चात् स्वर्ग में निवास करता है।
संपादकीय व्याख्या-पुराने ग्रंथों में अनेक प्रसंग राजाओं के संबंध में कहे जाते हैं पर इसका आशय यह यह कतई नहीं है कि उनका सामान्य व्यक्ति से कोई संबंध नहीं हैं। जिस तरह राजा अपने राज्य का मुखिया होता है उसी तरह सामान्य मनुष्य भी अपने परिवार का मुखिया होता है। अगर कोई राजा मेंं होना जरूरी है तो उतना ही सामान्य मनुष्य में जरूरी है। जिस दोष से राजा को परे होना चाहिये उससे सामान्य मनुष्य को भी परे होना चाहिये।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
2 comments:
िवजयदशमी पवॆ की शुभकामनाएं ।
अच्छा िलखा है आपने
दशहरा पर मैने अपने ब्लाग पर एक िचंतनपरक आलेख िलखा है । उसके बारे में आपकी राय मेरे िलए महत्वपूणॆ होगी ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
आप वस्तुतः हिन्दी जगत को मोतियों से भर रहे हैं।
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