गुजरात के एक प्रसिद्ध हीरा
व्यापारी ने अपनी कंपनी के 1200 कर्मचारियों को-जिन्हें वह हीरा
अभियन्ता या इंजीनियर कहते हैं-दीपावली के अवसर पर बोनस में कार तथा फ्लेट देने की
घोषणा कर पूरे देश के धनपतियों के लिये आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। वैसे
गुजरात के बारे में हमारा मानना यह है कि वहां के लोग धन और धर्म में समान
दिलचस्पी रखते हैं। सांस्कृतिक रूप से भी
उनकी गतिविधियां अत्यंत रुचिकर हैं। बहुत
समय पहले गुजरात के ही एक धनी सेठ ने अपना सब कुछ दान कर सन्यास अपना लिया था।
भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को संपन्न बनाने वाले भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपना निवास
गुजरात में ही द्वारका में बनाया। महाभारत
युद्ध के समय उन्होंने कुरुक्षेत्र में
आकर श्रीमद्भागवत गीता में महान संदेश दिया जो आज उतना ही प्रासांगिक है जितना उस
समय था, जब दिया गया। माया और सत्य के बीच जीवन में वही इंसान सामंजस्य बनाकर चल
सकता है जो श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञाता हो।
श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है कि अकुशल श्रम को कभी हेय नहीं समझना चाहिये।
इसका भावनात्मक अर्थ यही है कि कोई अपनी रोटी रोटी कमाने के लिये छोट या बड़ा काम
करता है तो उसका आंकलन इस आधार पर नहीं करना चाहिये कि वह कितना कमा रहा है? वरन् हर व्यक्ति के आचरण, व्यवहार तथा विचार के आधार पर उसकी योग्यता का
आंकलन करना चाहिये। हमारे देश में
श्रमजीवियों का शोषण करने के साथ ही उनको अपमानित करने की प्रवृत्ति देखी जाती
है। उससे भी ज्यादा बुरा यह कि यह माना
जाता है कि उनमें ईमानदारी तो हो ही नहीं सकती। हमारे समाज में अर्थ के आधार पर
हमेशा ही विषम हालात रहे हैं। यही कारण है कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथ हमेशा
निष्प्रयोजन दया का संदेश सामाजिक समरसता बनाने रखने का प्रयास करते रहे हैं।
सामाजिक समरसता बनाने के लिये श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने वेदों का
सार प्रस्तुत कर अपना संदेश स्थापित किया।
भारत में आर्थिक द्वंद्व के इतना रहा कि विदेशियों के लिये यहां फूट डालकर
आसान रहा है। एक तरफ धनी लोग अपने अहंकार में सामाजिक कार्यक्रमों में अपने धन का
प्रदर्शन करते रहे तो दूसरी तरह अल्प धनी और श्रमिक मन ही मन कुड़ते रहे। यही कारण
है कि विदेशी आक्रांताओं ने यहीं के लोगों को सपने दिखाकर अपनी तरफ किया और देश को
लूटते रहे। मोहम्मद गौरी ने तो सोमनाथ
मंदिर पर आक्रमण ढेर सारी दौलत लूटी जो गुजरात में ही था। हम यह कहते हैं कि मुगल और अंग्रेजों ने हम पर
शासन किया पर आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि दोनों के समय पुलिस तथा सेना में
उनके स्वयं के देश में जन्मे लोग थे या
भारतीय ही उनकी सेवा कर रहे थे। हमारा मानना है कि नाम विदेशी शासकों का भले ही
रहा हो पर वास्तव में कहीं न कहीं भारत के अंसतुष्ट वर्ग ने ही उनकी सत्ता बनाये
रखने में सहायता की और लाभ उठाने वाला मध्यस्थ भी यहीं का बुद्धिजीवी वर्ग रहा था।
कहने का अभिप्राय यह है कि अगर हम चाहते हैं कि हमारे धर्म, संस्कृति तथा क्षेत्र की एकता तभी बनी रह सकती है जब धनिक वर्ग उदार रवैया
अपनायेगा। वह अपने साथ कम करने वाले श्रमिक तथा बुद्धिजीवी वर्ग को वैसी ही भौतिक
सुविधायें स्वयं उपलब्ध कराकर ही सामाजिक समरसता का वातावरण बनाये रह सकता
है। इसी से उसकी संपत्ति, व्यवसाय तथा परिवार की भी रक्षा हो सकती है। जिस तरह विश्व में मुद्रा ने
बृहद रूप धारण कर लिया उसमें अब यह संभव नहीं है उसमें से थोड़ा श्रमिक या
बुद्धिजीवी कर्मी को दे दिया और वह प्रसन्न होकर चला गया। ऐसे में बृहर उपहार देना ही चाहिये। इस दीपावली पर देश के धनिक वर्ग को आत्ममंथन
करना चाहिये। ‘अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता’ का सिद्धांत चलना अब
संभव नहीं।
इस
दीपावली पर सभी ब्लॉग लेखक मित्रों, पाठकों तथा शुभचिंत्तकों को हार्दिक बधाई।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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