पूरे विश्व के साथ
आर्थिक संबंध बनाये रखने की योजना के तहत हमारे देश में जो अर्थनीति बनायी गयी उसे
उदारीकरण कहा जाता है। इस नीति के कारण हमारे देश में मध्यम वर्ग का रूप ही बदल
गया है। आमतौर से मध्यम वर्ग में निजी तथा शासकीय क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारी,
असंगठित छोटे व्यवसायी, निजी चिकित्सक तथा अन्य सेवायें करने वाले ऐसे
लोग शामिल माने जाते हैं जिनकी आय केवल अपने परिवार के उचित पालन तक ही हो पाती
है। भारत की आजादी के बाद सरकारी क्षेत्र का विस्तार हुआ जिसमें
कार्यरत कर्मचारियों की संख्या इतनी अधिक थी कि समाज में उनकी उपस्थिति एक प्रथक
जाति के रूप में दिखने लगी थी। दरअसल
सरकारी क्षेत्र में एक तयशुदा तनख्वाह मिलने से अनेक परिवारों का जीवन स्तर स्वाभाविक रूप से बढ़ा। मध्यम वर्ग में सर्वाधिक संख्या निजी छोटे
व्यवसायियों के बाद सरकारी कर्मचारियेां की रही थी। दरअसल प्रारंभ के आर्थिक
रणनतिकारों ने सरकारी सेवा में
कर्मचारियों की नियुक्ति को जन कल्याण का भी एक रूप माना थां उदारीकरण के साथ ही
जैसे जैसे सरकारी क्षेत्र सीमित होने लगा है जिससे अब सरकारी सेवा में अधिक लोग
रखना संभव नहीं है। निजीकरण में कंपनी के
नाम से संगठित उद्यमियों के हाथ में आर्थिक सत्ता जा चुकी है जिनकी रुचि नौकरियां
देकर समाज कल्याण में नहंी होती। दूसरी बात यह कि निजी उद्यमी अपने उत्पाद का
स्वयं विक्रय करने के लिये केंद्र बनाते हैं।
इससे छोटे निजी व्यवसायी भी प्रभावित हो रहे हैं। सच बात तो यह है कि वर्तमान स्थिति में मध्यम
वर्ग के सामने अस्तित्व का संकट है इसी कारण उसमें शािमल लोग इधर उधर अपनी आय
बढ़ाने के लिये हाथ मारते हैं। अनेंक
लोग नौकरियंा बदलते हैं या निजी व्यवसाय के
लिये छोड़े देते हैं। अनेक व्यवसायी अपना व्यवसाय बदलने का प्रयास करने लगे
हैं। ऐसे में अगर बदलाव फलीभूत हो तो ठीक
वरना उनका संकट बढ़ जाता है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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यो ध्रुवाणि परित्यज्य अधुवं परिषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति आध्रुवं नष्टमेव च।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य हाथ में
आये निश्चित पदार्थ को त्याग कर अनिश्चित की तरफ भागता है उसे वह मिलना तो
दूर जो निश्चित है वह भी हाथ से निकल जाता है।
मध्यम वर्ग बुद्धि का स्वामी भी माना
जाता है। तनाव दौर में
बुद्धि अधिक ही विचार करती है।
चंचल मन अनेक स्वप्न पालता है। जीवन में आर्थिक विकास की चाहत लिये आदमी
अनेक योजनायें बनाता है। सभी के कार्यक्रम सुखद रूप से संपन्न हों यह जरूरी नहीं
है। ऐसे में असफल मनुष्य का मन टूटता है।
टूटा मन लिये मनुष्य जीवन में अधिक दूर नहीं जा सकता। इसलिये जिन लोगों का रोजगार
बना हुआ है उसमें ही अधिक आय अर्जित करने का प्रयास करें। जब कभी दूसरा काम शुरु करें तो दस बार सोचें।
आजकल जिंदगी में धोखे भी कम नहीं रहे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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