आजकल हम देख रहे हैं कि
युवा वर्ग के लोगों की मौतों की घटनायें
अधिक हो रही है। आत्महत्या,
हत्या तथा सड़क दुर्घटनाओं में अक्सर
युवक युवतियों की मौत की खबरें प्रचार माध्यमों में आती रहती हैं। इतना ही नहीं राजमार्गों पर भी दूरी की यात्रा
कर रहे अनेक परिवारों के दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनायें भी होती रहती हैं। देश
में विकास के नाम पर भौतिकता के भाव ने लोगों की बुद्धि कुंद कर दी है। जिनके पास मोटर साइकिल और कार है वह उस पर
सोचकर सवारी करते है कि सड़क केवल उनके
लिये ही बनी। जिस तरह चूहे, बिल्ली और कुत्ते का खेल है कि ताकतवर अपने से
कमजोर पर हमला करता है वैसी ही स्थिति आजकल सड़क पर आवागमन करने पर दिखती है। वाहन वाला पैदल या साइकिल चालक को
तथा बड़े वाहन का सवार छोटे वाहन सवार को अपने आगे कुछ नहीं समझता। पैदल और साइकिल चालक को मोटर साइकिल वाले और
उनको कार तो कार वालों को ट्रक वाले अपनी वाहन से उड़ा देते हैं। कभी कभी तो लगता
है कि लोग सड़क पर बदहाली में चलने के आदी हो गये हैं। घर जो सुरक्षित पहुंचते हैं उनके परिवार वालों
को भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिये क्योंकि जिस तरह सड़कों पर आवागमन की स्थिति
है वह अत्यंत शोचनीय है।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम्।
हस्ती शतहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनम्।।
हिन्दी में भावार्थ-बैलगाड़ी से पांच, घोड़े से दस तथा हाथी से सौ हाथ दूर रहना चाहिये। जहां
दुष्ट रहता हो तो उस क्षेत्र का त्याग कर देना चाहिये।
अगर हम चाणक्य नीति को
देखें तो लगता है कि ऐसी दुर्घटनायें ंपहले भी होती रहती होंगी तभी उनसे बचने के
लिये उन्होंने मार्ग में बैलगाड़ी, घोड़े तथा हाथी से दूर चलने का सुझाव
दिया। अभी तक आधुनिक समय में तीन ‘टी’ यानि ट्रेक्टर, ट्रक तथा
टू-सीटर से बचने की सलाह देते रहे हैं पर लगता है कि मोटर साइकिल को टू-सीटर शायद
नहंी माना जाता है हालांकि वह आती उसी श्रेणी मैं है। यही कारण है कि आजकल अधिकतर दुर्घटनायें
मोटरसाइकिल सवारों के साथ होती है या वह उनके लिये जिम्मेदार होते हैं। समस्या यह है कि लोग चाहे वह कार पर हों या
बाइक पर, अपने सवारी वाहन लेकर एक दूसरे के इतना नजदीक चलते
हैं कि एक ब्रेक लगाये तो दूसरा टकरा ही जाता है। इस बात पर भी जमकर झगड़े होते
हैं। आखरी बात यह कि वाहन संख्या में बढ़
गये हैं और सड़कें अतिक्रमण के कारण पहले से कम चौड़ी हो गयी हैं। ऐसे में वाहन टकरायेंगे ही पर लोगों को आपस में
लड़ने से बचना चाहिये। अनेक बार तो ऐसी
हृदय विदारक घटनायें हुई हैं जिसमें गाड़ियां टकराने पर कत्ल तक हो गये हैं। हमारे यहां अब अध्यात्मिक ज्ञान का महत्व अधिक
नहीं दिया जात है पर सच यह है कि उसमें भी मार्ग पर सावधानी से चलने का सुझाव दिया
गया है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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