हमारे देश
में समय समय पर अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने तत्व ज्ञान का प्रचार किया। उनके त्याग का यह परिणाम है कि विश्व में हमारा
देश विश्व गुरु के नाम से जाना जाता है। आमतौर
से हमारे देश में तत्वज्ञान की धारा इस तरह प्रवाहित है कि देश का हर व्यक्ति समय समय
पर उसे बघारता है। यह अलग बात है कि ज्ञान को धारण कर उसके अनुसार जीवन गुजारने वाले
लेाग बहुत कम मिलते हैं। अधिकतर लोग मायाजाल
में प्रभाव में इस तरह पड़े रहते हैं कि पाखंड उनके जीवन का आधार बन जाता है।
अनेक संत
समाज को सही दिशा देने का प्रयास करते हैं। उनके पास भीड़ भी लगती है पर उनके बताये
मार्ग पर चलने वाले बहुत कम होते हैं। अनेक योग शिक्षक यह प्रयास करते हैं कि अधिक
से अधिक लोग योग साधना से जुड़ें पर वह सफल नहीं होते। हमारे समाज के लोग यह तो मानते
हैं कि येाग साधना से जीवन में सकारात्मक प्रभाव आता है पर करने की बात आये तो समय
नहीं मिलता या रात्रि को देर से सोने के कारण प्रातः नींद नहीं खुलती जैसे बहाने सुनाते
हैं।
एक योग
शिक्षिका के पास एक स्त्री आयी और उसके समक्ष अपनी तमाम बिमारियों का जिक्र किया। अपनी
पारिवारिक समस्यायें भी सुनाई। योग शिक्षिका ने उससे कहा कि -‘तुम योग साधना करो तो तुम्हारा
मानसिक तनाव कम होगा।’
उस स्त्री
ने जवाब दिया कि-‘ मैं बहुत सोचती हूं कि पर जब तक मेरा मानसिक तनाव कम नहीं होगा मैं योग साधना नहीं
कर सकती।
शिक्षिका हंसने
लगी। वह समझ गयी कि इस नारी को समझाना कठिन काम है। योग साधना से मानसिक तनाव कम होता है अगर वह नहीं
है तो फिर योग साधना करने की जरूरत भी कहां रह जती है? मगर सच यही है कि लोग कुंऐ के मेंढक
की तरह सांसरिक विषयो में अपनी देह नष्ट करने में ही अपना धर्म समझते हें।
संत दरिया का कहना है कि
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बातों में ही बह गया, निकम गया दिन रात।
मुहलत जब पूरी आन घड़ी जम घात।
सामान्य हिन्दी
भाषा में भावार्थ-मनुष्य अपना सारा समय
बातों में ही निकाल देता है। जब समय की मोहलत समाप्त होती है तब उसके प्राणों की घड़ी
बंद हो जाती है।
बाहर से उजाल दसा, भीतर मैला अंग।
ता सेती कौवा भला, तन मन एकाहि रंग।
सामान्य हिन्दी भाषा
में भावार्थ-हंस और बगुला दोनों
का रंग सफेद होता है पर बगुले का हृदय काला होता है। उससे तो कौवा भला जिसका रंग और मन एक ही जैसा यानि
काला होता है।
सांसरिक
विषयो में लिप्त लोगों के लिये पाखंड करना अनिवार्य बन जाता है। अनेक लोग तो साधुओं के वेश धारण कर विचरते हैं। कोई जीभ के स्वाद के लिये साधु बनता है तो कोई धन
के लिये मन में व्याप्त तृष्णा को शांत करने के लिये धवल वस्त्र पहनता है। सच बात तो
यह है कि हमारे समाज में बढ़ते खतरों के लिये काली नीयत से काले कर्म करने वाले प्रमाणिक
लोग जिम्मेदार कम हैं बल्कि उससे ज्यादा तो वह जो सभ्य मुखौटा लगाये असभ्य कामों को
प्रोत्साहन देते हैं। बोलचाल की भाषा में उनको
सफेदपोश कुकर्मी कहा जाता है। कुख्यात और पेशेवर
अपराधी तो समाज में पहचाने हुए होते हैं। उनसे
हर कोई सतर्क रहता है जबकि सफेदपोश अपराधियों
की पहचान करना कठिन है, इसलिये धोखा होने की संभावना अधिक रहती है। इसलिये हर व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय सतर्कता
बरतना चाहिये।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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