भारतीय
योग विज्ञान में प्राणायाम का अत्यंत महत्व है। कहा जाता है कि आसन से देह,
प्राणायाम से मन तथा
ध्यान से विचारों की शुद्धि होती है। इनमें
प्राणायाम का महत्व इसलिये भी अधिक होता है क्योंकि मनुष्य की देह में चंचल मन अनिंयत्रित
गति से उसे इधर उधर दौड़ाते हुए मानसिक कष्ट देता है। प्राणायाम से मन पर नियंत्रण होता है। जिस तरह आग
में सोना, चांदी या धातु तपकर चमक पाते हैं उसी तरह प्राणायाम से न केवल मन की शुद्धि होने
से सभी इंद्रियों पर नियंत्रण हो जाता है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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दह्यन्ते ध्यायमानानां धतूनां हि
यथा मानाः।
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः विज्ञेयं
परमं तपः।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस तरह अग्नि में सोना तथा
चांदी आदि धातुओं को डालने से जिस प्रकार उनकी अशुद्धता दूर होती है उसी तरह प्राणायाम
की साधना करने से इंद्रियों के सारे पाप तथा विकार दूर होने पर वह शुद्धता को प्राप्त
करती है।
प्राणायामा ब्राह्णस्य प्रयोऽपि विधिवत्कृताः।
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः विज्ञेयं
परमं तपः।।
हिन्दी में भावार्थ-कोई भी विद्वान जब प्राणायाम
तथा व्याहृति (भूः भुवः स्वः) के साथ विधि के अनुसार प्राणायाम करे तो उसे तप ही समझना
चाहिये।
प्राणायाम
केवल व्यायाम नहीं है वरन् भगवान श्रीकृष्ण
इसे यज्ञ और हवन ही मानते हें। श्रीमद्भागवत श्रीगीता में प्राणवायु को अपानवायु तथा अपानवायु
को प्राणवायु में स्थापित करने की क्रिया को
हवन ही माना है। वह प्राणायाम करने वाले को सहज योगियों में ज्ञानी योगगी मानते हैं। हमने देखा है कि हमारे समाज में अनेक पेशेवर धार्मिक
विद्वानों ने घी तथा अन्य वस्तुओं का अग्नि
में डालने को ही यज्ञ कहकर प्रचारित किया है।
ऐसे लोग विरले ही हैं जो योगसाधना में यज्ञ के तत्व ढूंढते हैं। सच बात तो यह
है कि हम जिन भौतिक पदार्थों की आहुति से अग्नि
में हवन करते हैं वह सभी योगसाधना करने पर हमारी देह में निर्मित होते हैं। वह
ऊर्जा परमात्मा का ध्यान के माध्यम से
उन्हें अर्पित करने पर द्रव्यमय यज्ञ से अधिक मानसिक शांति मिलती है। इस यज्ञ को ज्ञानयज्ञ कहा जाता है जिसे द्रव्यमय
यज्ञ से अधिक श्रेष्ठ है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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