हिंसा का भाव हमेशा ही
मनुष्य में नहीं रहता बल्कि उसके मन का अहिंसा एक स्थाई भाव है जिसमें
स्थित मनुष्य न केवल स्वयं आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता है वरन समाज में
लोकप्रिय होता है। जो व्यक्ति हिंसक व्यापार में लिप्त रहता होता है वह
भी हर समय हथियार में उठाए नहीं रहता। श्रीमद्भागवत गीता में बताया गया
है कि इस संसार के सारे पदार्थ परमात्मा के संकल्प के आधार पर स्थित पर वह
उनमें नहीं है। यहां इस बात को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि इस संसार
के देहधारी जीव के संकल्प से गहरा संबंध है क्योंकि वह अंततः उसी परमात्मा
का अंश हैं। इसलिये जीव भले ही इस संसार और भौतिक पदार्थों को धारण करे वह
उसमें अपना भाव लिप्त न करे, इसे ही निष्काम भाव भी कहा जाता है। हम अगर
योग साधना और ध्यान करने के साथ श्रीमद्भावगत गीता का अध्ययन करें तो धीरे
धीरे यह बात समझ में आने लगेगी कि यह संसार की प्रकृति और इसमें स्थित
समस्त पदार्थ न बुरे हैं न अच्छे, बल्कि वह हमारे संकल्प के अनुसार कभी
प्रतिकूल तो कभी अनुकूल होते हैं। इसलिये हम अपने हृदय के अंदर अहिंसा,
त्याग, तथा परोपकार के संकल्प धारण करें तो यह सारा संसार और पदार्थ हमारे
अनुकूल हो जायेंगे।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
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अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।
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अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।
‘‘हृदय में अहिंसा का भाव जब स्थिर रूप से प्रतिष्ठ हो जाता है तब उस योगी के निकट सब प्राणी वैर का त्याग कर देते हैं।
अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्।
‘‘हृदय जब चोरी के भाव से पूरी तरह रहित हो जाता है तब उस योगी के समक्ष सब प्रकार के रत्न प्रकट हो जाता है।’’
अधिकतर लोग यह तर्क देते हैं कि यह संसार बिना चालफरेब के चल नहीं सकता।
यह लोगों की मानसिक विलासिता और बौद्धिक आलस्य को दर्शाता है। एक तरह से
यह मानसिक विकारों से ग्रसित लोगों का अध्यात्मिक दर्शन से परे एक बेहूदा
तर्क है। हम यह तो नहीं कहेंगे कि सारा समाज ही मानसिक विकारों से ग्रसित
है पर अधिकतर लोग इस मत के अनुयायी हैं कि जैसे दूसरे लोग चल रहे हैं वैसे
ही हम भी चलें। कुछ लोग ऐसे जरूर हैं जो इस सत्य को जानते हैं और अपने
देह, हृदय तथा मस्तिष्क से विकारों की निकासी कर अपना संकल्प शुद्ध रखते
हुए अपना जीवन शांति से जीते हैं। ऐसे लोग संख्या में नगण्य होते हैं पर
समाज के लिये वही प्रेरणास्त्रोत होते हैं। उनसे ही इसकी प्रेरणा लेना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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