समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Saturday, February 04, 2012

दादू दयाल के दोहे-निंदक तो बिचारा होता है (nindak to bichara hai-dadu dayal ke dohe)

        दूसरे की निंदा करने में अधिकतर लोगों को मज़ा आता है।  बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस बीमारी से बच पाते हैं। आत्ममंथन की प्रक्रिया से बचने के लिए दूसरों के दोष देखकर आनंद उठाते हैं।  कभी कभी अपना अपने बाह्य व्यक्तित्व पर आत्ममंथन करना चाहिए। जब हम गुस्से या निराशा में आकर दूसरे की निंदा करते हैं तब शांत होने के बाद अपने ही शब्दों पर विचार करने से यह पता चलेगा कि हमने किसी अन्य पुरुष की निंदा कर उसके जिन दुर्गुणों का बखान किया था वह हमारे अंदर भी आ गये हैं। इतना ही नहीं जिसकी हम निंदा करते हैं कहीं न कहीं उसको लाभ यह होता है कि वह अपने उस दुर्गुण से मुक्त होकर जीवन में तरक्की करता जाता है। जबकि निंदा करने वाला अपने अंदर नये दुर्गुण की वजह से पिछड़ जाता है।
निंदा के विषय में कविवर दादू दयाल कहते हैं कि
--------------------
‘दादू’ निद्ना नांव न लीजिये, सुपिनै ही जिनि होइ।
ना हम कहैं न तुम सुणो, हम जिनि भाखै कोइ।।
         ‘‘कभी सपने में भी किसी व्यक्ति की निंदा नहीं करना चाहिए। न हमें किसी की निंदा सुनना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दुर्गुण अपने अंदर नहीं लाना चाहिए।’’
‘दादू-निंदक बपुरा जिनि मरे, पर जपगारी सोइ।
हम कूं करत ऊजाना, अपाण मैल होइ।।
          ‘‘निंदक बिचारा तो दूसरों के दुर्गुणों का जप करता हुआ उनका अपने अंदर स्थापित करता है जबकि जिसकी निंदा वह करता है उसका मन उजला होता जाता है।’’
       अगर हम समाज में अपने ज्ञान चक्षुओं को खोलकर विचरण करें तो पायेंगे कि लोग एक दूसरे की निंदा कर अपने को श्रेष्ठ अनुभव करते है। इससे यह होता है कि एक दूसरे के दुर्गुण उनमें प्रविष्ट होकर अपना दुष्प्रभाव दिखाते हैं। यही कारण है कि हम कहते हैं कि आज कोई सुखी नहीं है। दूसरों की निंदा करने तथा सुनने की सहज आदत के कारण लोग आत्ममंथन नहीं करते जिससे उनको अपने व्यक्तित्व में निखार लाने का अवसर नहीं मिल पाता। लोग इतनी मर्यादा तक का पालन नहीं करते कि अपने बच्चों के सामने अपने ही बड़े लोगों के विरुद्ध विषवमन न करे जिसके कारण समाज और परिवार में रिश्तों में तनाव पनपता है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

No comments:

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें