हमारे देश में अतिथि के स्वागत की परंपरा है पर उसकी अनेक सीमायें हैं। अतिथि के घर आने का उद्देश्य, पवित्रता तथा उसकी योग्यता पर ध्यान देना आवश्यक है। हमारे देश में संस्कार तथा संस्कृति के नाम पर भी कई नारे प्रचलित हो गये हैं। इनमें एक है ‘अतिथि देवो भव‘। इसको लेकर बहुत सारी बातें कही जाती हैं जबकि हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि मेहमान की पात्रता तभी स्वीकार्य है जब वह पवित्र मनुष्य हो। ऐसा नहीं है कि हर किसी को घर के दरवाजे पर आने पर मेहमान का दर्जा देकर उसका स्वागत किया जाये। दरअसल इस तरह के नारे अध्यात्मिक ग्रंथों में वर्णित तत्वज्ञान के अभाव में ही समाज में प्रचलित हो गये हैं। कुछ लोग तो यह कहते हैं कि अतिथि सत्कार धर्म का सर्वोच्च रूप है और एक तरह से यज्ञ करने से अधिक श्रेष्ठ है। यह सत्य है कि अगर सुपात्र मनुष्य का अतिथि रूप में सत्कार करना एक तरह यज्ञ ही है पर इसमें पवित्रता का विचार भी होना चाहिए। ज्ञानी लोग हर क्रिया को यज्ञ की तरह मानते हैं। जिस तरह यज्ञ पवित्र स्थान पर पवित्र वस्तुओं से किया जाता है उसी तरह अतिथि सत्कार का धर्म भी पवित्र व्यक्ति को प्रदान किया जाना चाहिए।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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ज्ञानेनैवापरे विप्राः यजन्ते तैमंखेःसदा।
ज्ञानमूलां क्रियामेषां पश्चन्तो ज्ञानचक्षुषा।
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ज्ञानेनैवापरे विप्राः यजन्ते तैमंखेःसदा।
ज्ञानमूलां क्रियामेषां पश्चन्तो ज्ञानचक्षुषा।
‘‘तत्वाज्ञानी सभी क्रियाओं को अपने ज्ञान नेत्रों से देखते हुए उसके प्रेरक तत्वों को पहचानते हैं। इस तरह वह अपने ज्ञान से ही यज्ञानुष्ठान करना सबसे महत्वपूर्ण मानते है।
पाषण्डिनो विकर्मस्थान्बैडाव्रतिकांछठान्।
हैंतुकान्वकवृत्तश्चि वांड्मात्रेण्णापि नार्चयेत्।।
हैंतुकान्वकवृत्तश्चि वांड्मात्रेण्णापि नार्चयेत्।।
‘‘पांखडी, दृष्ट, ठग, दूसरों को दुःख पहुंचाने वाला तथा धर्म ग्रंथों में अरुचि रखने भले ही सज्जनता का व्यवहार करे पर उसे कभी मेहमान नहीं बनाना चाहिए। इतना ही नहीं उसका वाणी से भी कभी स्वागत नहीं करना चाहिए।’’
हमारे देश में पहले शिक्षा के अभाव में लोगों को अध्यात्मिक ग्रंथों का ज्ञान नहीं था तो अब आधुनिक शिक्षा ने उनको एक तरह से विरक्त ही कर दिया गया है। इसलिये चालाक लोग दूसरों को अतिथि सत्कार का धर्म निभाने की राय देते हैं और स्वयं मजे करते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि तत्वज्ञान को समझा जाये। अपनी हर क्रिया को अपने ज्ञान चक्षुओं से देखते हुए यज्ञ होने की अनुभूति की जाये। जीवन में आनंद लेने का यह भी एक तरीका है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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