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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, March 16, 2011

अभिलाषा और आकांक्षा की कोई सीमा नहीं-हिन्दू धार्मिक विचार (abhilasha aur akanksha ki seema nahin-patanjlali yog sahitya)

आम आदमी की जिंदगी हमेशा ही कठिन होती है पर आजकल के समय में तो लगभग दुरूह हो गयी है। बढ़ती महंगाई, हिंसा, तथा भ्रष्टाचार ने आम आदमी को त्रस्त कर दिया है। ऐसे में हर आम इंसान सोचता है कि वह बड़े आदमी की चमचागिरी कर जीवन में शायर कोई उपलब्धि प्राप्त कर ले। इस भ्रम में अनेक लोग बड़े लोगों की चाटुकारिता लगते हैं, मगर फायदा उसी को होता है जो दौलतमंदों के तलवे चाटने की हद तक जा सकता है। सच तो यह है कि कोई आदमी कितना भी दौल्त, शौहरत या पद की ऊंचाई पर पहुंच जाये पर उसकी मानसिकता छोटी रहती है। ऐसे में उनकी चमचागिरी से सभी को कुछ हासिल नहीं होता इसलिये जहां तक हो सके अपने अंदर आत्मविश्वास लाकर जीवन में संघर्ष करना चाहिए।
पतंजलि  योग साहित्य के अनुसार 
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दुरारध्याश्चामी तुरचलचित्ताः क्षितिभुजो वयं
तु स्थूलेच्छाः सुमहति बद्धमनसः।
जरा देहं मृत्युरति दयितं जीवितमिदं
सखे नानयच्छ्रेयो जगति विदुषेऽन्यत्र तपसः।।
"जिन राजाओं का मन घोड़े की तरह दौड़ता है उनको कोई कब तक प्रसन्न रख सकता है। हमारी अभिलाषायें और आकांक्षायें की तो कोई सीमा ही नहीं है। सभी के मन में बड़ा पद पाने की लालसा है। इधर शरीर बुढ़ापे की तरह बढ़ रहा होता है। मृत्यु पीछे पड़ी हुई है। इन सभी को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि भक्ति और तप के अलावा को अन्य मार्ग ऐसा नहीं है जो हमारा कल्याण कर सके।"
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों के मन में धन पाने की लालसा बहुत होती है और इसलिये वह धनिकों, उच्च पदस्थ एवं बाहुबली लोगों की और ताकते रहते हैं और उनकी चमचागिरी करने के लिये तैयार रहते हैं। उनकी चाटुकारिता में कोई कमी नहीं करते। चाटुकार लोगों को यह आशा रहती है कि कथित ऊंचा आदमी उन पर रहम कर उनका कल्याण करेगा। यह केवल भ्रम है। जिनके पास वैभव है उनका मन भी हमारी तरह चंचल है और वह अपना काम निकालकर भूल जाते हैं या अगर कुछ देते हैं तो केवल चाटुकारिता  के कारण नहीं बल्कि कोई सेवा करा कर। वह भी जो प्रतिफल देते हैं तो वह भी न के बराबर। इस संसार में बहुत कम ऐसे लोग हैं जो धन, पद और प्रतिष्ठा प्राप्त कर उसके मद में डूबने से बच पाते हैं।  अधिकतर लोग तो अपनी शक्ति के अहंकार में अपने से छोटे आदमी को कीड़े मकौड़े जैसा समझने लगते हैं और उनकी चमचागिरी करने पर भी कोई लाभ नहीं होता।  अगर ऐसे लोगों की निंरतर सेवा की जाये तो भी सामान्य से कम प्रतिफल मिलता है।
सच तो यह है कि आदमी का जीवन इसी तरह गुलामी करते हुए व्यर्थ चला जाता हैं। जो धनी है वह अहंकार में है और जो गरीब है वह केवल बड़े लोगों की ओर ताकता हुआ जीवन गुंजारता है। जिन लोगों का इस बात का ज्ञान है वह भक्ति और तप के पथ पर चलते हैं क्योंकि वही कल्याण का मार्ग है।इस संसार में प्रसन्नता से जीने का एक ही उपाय है कि अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए ही जीवन भर चलते रहें।  अपने से बड़े आदमी की चाटुकारिता से लाभ की आशा करना अपने लिये निराशा पैदा करना है।
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संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',ग्वालियर 
author and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep",Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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1 comment:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

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