जैसे जैसे इस विश्व में भौतिकवाद की प्रधानता बढ़ रही है वैसे वैसे ही लोगों की संवेदनशीलता कम होती जा रही है। लोग प्यार करना नहीं जानते पर चाहते हैं कि दूसरे उनको प्यार करें। अपने तथा परिवार के सदस्यों के अंदर बीज बोते हैं लालच का और समाज में दूसरे लोगों के अंदर उदारता के वृक्ष लगने की आशा करते हैं। ऐसे निस्वार्थ प्रेम की आशा करते हैं जिसको करना वह स्वयं नहीं जानते। हालत यह है कि स्त्री और पुरुष की दैहिक संबंधी क्रियाओं के इर्दगिर्द प्रेम की परिभाषा सिमट गयी है।
इस विषय पर संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं
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प्रीति बहुत संसार में, नाना विधि की सोय
उत्तम प्रीति सो जानिए, सतगुरू से जो होय
उत्तम प्रीति सो जानिए, सतगुरू से जो होय
" इस संसार में प्रेम करने वाले बहुत हैं और प्रेम करने के अनेक तरीके और विधियां भीं हैं पर सच्चा प्रेम तो वही है जो परमात्मा से किया जाये।"
जब लग मरने से डरैं, तब लगि प्रेमी नाहिं
बड़ी दूर है प्रेम घर, समझ लेहू मग माहिं
बड़ी दूर है प्रेम घर, समझ लेहू मग माहिं
"जब तक मृत्यु का भय है तब तक प्रेम हो नहीं सकता हैं प्रेम का घर तो बहुत दूर है और उसे पाना आसान नहीं है।
वर्तमान सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे जन जीवन में फिल्मों का प्रभाव अधिक हो गया है जिसमें प्रेम का आशय केवल स्त्री पुरुष के आपस संबंध तक ही सीमित हैं। सच तो यह है कि अब कोई पिता अपनी बेटी से और भाई अपनी बहिन से यह कहने में भी झिझकता है कि ‘मैं तुमसे प्रेम करता हूं’ क्योंकि फिल्मी में नायक-नायिका के प्रेम प्रसंग लोगों के मस्तिष्क में इस तरह छाये हुए हैं कि उससे आगे कोई सोच ही नहीं पाता। किसी से कहा जाये कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं तो उसके दिमाग में यह आता है कि शायद यह फिल्मी डायलाग बोल रहा हैं। वैसे इस संसार में प्रेम को तमाम तरह की विधियां हैं पर सच्चा प्रेम वह है जो भगवान भक्ति और स्मरण के रूप में किया जाये। प्रेम करो-ऐसा संदेश देने वाले अनेक लोग मिल जाते हैं पर किया कैसे किया जाये कोई नहीं बता सकता। प्रेम करने की नहीं बल्कि हृदय में धारण किया जाने वाला भाव है। उसे धारण तभी किया जा सकता है जब मन में निर्मलता, ज्ञान और पवित्रता हो। स्वार्थ पूर्ति की अपेक्षा में किया जाने वाला प्रेम नहीं होता यह बात एकदम स्पष्ट है।
अगर किसी आदमी के भाव में निच्छलता नहीं है तो वह प्रेम कभी कर ही नहीं सकता। हम प्रतिदिन व्यवहार में सैंकड़ों लोगों से मिलते हैं। इनमें से कई अपने व्यवहार से खुश कर देते हैं और स्वाभाविक रूप उनके प्रति प्र्रेम भाव आता है पर अगर उनमें से अगर किसी ने गलत व्यवहार कर दिया तो उस पर गुस्सा आता है। इससे जाहिर होता है कि हम उससे प्रेम नहीं करते। प्रेम का भाव स्थाई है जिससे किया जाता है उसके प्रति फिर कभी मन में दुर्भाव नहीं आना चाहिए। ------------
संकलक लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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