अमल आहारी आतमा, कबहुं न पावै पार।
कहैं कबीर पुकारि के, त्यागो ताहि विचार।।
कहैं कबीर पुकारि के, त्यागो ताहि विचार।।
कबीरदास जी कहना है कि नशे का सेवन करने वाले इस संसार रूपी दरिया को कभी पार नहीं कर सकते। अतः नशीली वस्तुओं का सेवन त्याग देना चाहिए।
छाजन भोजन हक्क है, अनाहक लेय।
आपन दोजख जात है, और दोजख देय।
आपन दोजख जात है, और दोजख देय।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं हर इंसान को भोजन पाने का हक है पर वह ऐसी वस्तुओं का सेवन करता है जिन पर उसका हक नहीं है। वह स्वयं तो नरक में जाता ही है दूसरों के लिये भी संकट पैदा करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जिस सर्वशक्तिमान ने जीव को पैदा किया है उसने उनके लिये भोजन की भी व्यवस्था की है। मनुष्य ही नहीं हर जीव का यह अधिकार है कि वह भोजन प्राप्त करे। पशु और पक्षी भी अपने भाग्य के अनुसार भोजन प्राप्त करते हैं पर मनुष्य ऐसा जीव है जो नशीने पदार्थों को सेवन करता है। नशीले पदार्थ ग्रहण करना उसका अधिकार नहीं है पर वह जबरन उनको ग्रहण करता है। इससे न वह स्वयं ही नरक भोगता है बल्कि दूसरों के सामने इस धरती पर नरक जैसा दृश्य प्रस्तुत करता है। पहले हुक्के का प्रचलन था जबकि आजकल सिगरेट और बीड़ी ने उसकी जगह ले ली है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार इनके सेवन करने वाला अपने शरीर की हानि तो करता ही है, पर वह जो धुंआ वातावरण में छोड़ता है उससे उसके पास बैठने वाले व्यक्ति को कहीं अधिक हानि होती है। इसके अलावा उसका धुआं विषाक्त गैस बनकर आसपास के लोगों को भी तकलीफ पहुंचाता है।
जो सिगरेट और बीड़ी का सेवन करते हैं उनको यह अनुमान ही नहीं होता कि उनके धुऐं की वजह से उनके अपने ही लोग उनको घृणा की दृष्टि से देखते हैं। यही स्थिति शराब की है। अनेक बार सार्वजनिक स्थानों पर पास खड़े शराबियों में मुख से आने वाली दुर्गंध कष्टदायी लगती है और लोग उनको कभी घृणित दृष्टि से देखते हैं। इस तरह धुम्रपान तथा शराब को सेवन त्याग देना ही उचित है क्योंकि इनके सेवन का अधिकर मनुष्य का नहीं है। जो मनुष्य व्यसन करता है वह अपना ही नहीं दूसरे का जीवन भी नारकीय बनाता है।
------------------संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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