राम नाम को छाड़ि कर, करे और की आस।
कहैं कबीर ता नर को, होय नरक में वास।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं जो मनुष्य राम नाम का स्मरण छोड़कर विषय वासना में रत हो जाते हैं उनको नरक में जाकर निवास करना पड़ता है।
कहैं कबीर ता नर को, होय नरक में वास।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं जो मनुष्य राम नाम का स्मरण छोड़कर विषय वासना में रत हो जाते हैं उनको नरक में जाकर निवास करना पड़ता है।
मुख से नाम रटा करैं, निस दिन साधुन संग।
कहु धौं कौन कुफेर तें, नाहीं लागत रंग।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि लोग दिन रात भगवान के नाम का जाप करते हैं, साधुओं के पास जाते हैं ऐसे में किसे दोष दें कि उनके जीवन में रंग नहीं चढ़ता।
कहु धौं कौन कुफेर तें, नाहीं लागत रंग।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि लोग दिन रात भगवान के नाम का जाप करते हैं, साधुओं के पास जाते हैं ऐसे में किसे दोष दें कि उनके जीवन में रंग नहीं चढ़ता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अगर हम अपने देश की वर्तमान दशा को देखें तो दुःख होने के साथ कभी कभी हंसी भी आती है। शायद ही दुनियां में कोई ऐसा देश हो जहां भगवान नाम का स्मरण इतना होता हो पर जितना सामाजिक तथा आर्थिक भ्रष्टाचार है वह भी कहीं नहीं होगा। लोग एक दूसरे को दिखाने के लिये भगवान का नाम लेने साथ ही सत्संगों में जाकर साधुओं के प्रवचन सुनते हैं पर घर आकर सभी का व्यवहार मायावी हो जाता है। बड़े शहरों में नित प्रतिदिन धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होने पर वहां लोगों के झुंड के झुंड शामिल होते हैं। कोई प्रवचन सुनता है तो कोई सुनते हुए दूसरे को भी सुनाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान की भक्ति लोग केवल दिखावे के लिये करते हैं और उनका लक्ष्य केवल स्वयं को धार्मिक या अध्यात्मिक व्यक्तित्व का स्वामी होने का दिखावा करना होता है।
वैसे हम लोग विषयों के पीछे भागते हैं जबकि सच तो यह है कि वह हमें कभी छोड़ते ही नहीं अलबत्ता हम उनकी सोच को अपने दिमाग में इस तरह बसा लेते हैं कि भगवान का नाम स्मरण करने का विचार ही नहीं आता। अगर आता भी है तो खाली जुबान से लेते हैं पर उसका स्पंदन हृदय में नहीं पहुंचता क्योंकि बीच रास्ते में विषयों की सोच रूपी पहाड़ उनका मार्ग अवरुद्ध करता है। यही कारण है कि भगवान भक्ति अधिक होने के बावजूद इस देश में नैतिक आचरण गिरता जा रहा है। बहुत कम लोग ऐसे रह गये हैं जिनमें मानवीय संवेदनायें और सद्भावना बची है।
इस दिखावे का ही परिणाम है कि मायावी समृद्धि की तरफ बढ़ रहे देश में अहंकार, संवेदनहीनता तथा भ्रष्टाचार के कारण नारकीय स्थिति की अनुभूति होती है। जिसके परिणाम स्वरूप हम अपने देश में सामाजिक वैमनस्य की बढ़ती प्रवृत्ति भी देख सकते हैं। ऐसा अध्यात्मिक शिक्षा के प्रति अरुचि के कारण ही हो रहा है यह बात याद रखना चाहिये।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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