चौसठ दीवा जाये के, चौदह चन्दा माहिं।
तेहि घर किसका चांदना, जिहि घर सतगुरु नाहिं।
महात्मा कबीरदास जी कहते हैं कि चौसठ कलाओं और चौदह विद्याओं की जानकारी होने पर पर अगर सत्गुरु का ज्ञान नहीं है तो समझ लीजिये अंधियारे में ही रह रहे हैं।
कबीर गुरु की भक्ति बिन, राज ससभ होय।
माटी लदै कुम्हार की, घास न डारै कोय।।
महात्मा कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु की भक्ति के बिना राजा भी गधा होता है जिस पर कुम्हार दिन भर मिट्टी लादेगा और कोई घास भी नहीं डालेगा।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-समाज में बढ़ती भौतिकतावादी प्रवृत्ति ने अध्यात्मिक ज्ञान से लोगों को दूर कर दिया है। हालांकि टीवी चैनलों, रेडियो और समाचार पत्र पत्रिकाओं में अध्यात्मिक ज्ञान विषयक जानकारी प्रकाशित होती है पर व्यवसायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये लिखी गयी उस जानकारी में तत्व ज्ञान का अभाव होता है। कई जगह तो अध्यात्मिक ज्ञान की आड़ में धार्मिक कर्मकांडों का प्रचार किया जा रहा है। इसके अलावा टीवी चैनलों में अनेक बाबाओं के अध्यात्मिक प्रवचनों के कार्यक्रम भी प्रस्तुत होते हैं पर उनका उद्देश्य केवल मनोरंजन करना ही है। वैसे भी समाज में ऐसे गुरुओं का अभाव है जो तत्वज्ञान प्रदान कर सकें क्योंकि उसके जानने के बाद तो मनुष्य का हृदय निरंकार में लीन हो जाता है जबकि पेशेवर धर्म विक्रेता अपने शब्दों को सावधि जमा में निवेश करते हैं जिससे कि वह हमेशा पैसा और सम्मान वसूल करते रहें। कभी कभी तो लगता है कि लोग धर्म के नाम पर केवल शाब्दिक बोझा अपने सिर पर ढो रहे हैं।माटी लदै कुम्हार की, घास न डारै कोय।।
महात्मा कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु की भक्ति के बिना राजा भी गधा होता है जिस पर कुम्हार दिन भर मिट्टी लादेगा और कोई घास भी नहीं डालेगा।
दूसरी बात यह है कि मनुष्य के हृदय में अगर तत्वज्ञान स्थापित हो जाये तो वह अपने सांसरिक कार्य निर्लिप्त भाव से कार्य करते हुए किसी की परवाह नहीं करता जबकि सभी लोग चाहते हैं कि कोई उनकी परवाह करे। तत्वाज्ञान के अभाव में मनुष्य को एक तरह से गधे की तरह जीवन का बोझ ढोना पड़ता है। यह बात समझ लेना चाहिये कि जीवन तो सभी जीते हैं पर तत्वाज्ञानियों के चेहरे पर जो तेज दिखता है वह सभी में नहीं होता। ज्ञान होने से न केवल आदमी शांत रहता है बल्कि उसका आभास सामने वाले को भी हो जाता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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1 comment:
deepak ji
bilkul sahi vishleshan kiya hai........alag hi dikhte hain wo mahapurush jinhone aatmavlokan kar liya hota hai.........aur kabir ji ki vani to har yug mein satya hai bas manne wale nhi milte.
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