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Sunday, July 27, 2014

मनुष्य समाज तीन भागों में बंटा है-भर्तृहरि नीति शतक के आधार पर चिंत्तन लेख(manushya samaj teen Bhagon mein banta hai-A Hindu hindi religion thought bhartrihari neeti shatak)



      ह संसार अत्यंत विचित्र है।  एक तरफ लोग आपसी वार्तालाप में ज्ञान की बातें करते हुए स्वयं को विद्वान साबित करने का बहुत प्रयास करते हैं दूसरे तरफ सांसरिक  व्यवहार में सारे सिद्धांत ताक में रख देते हैं।  अनेक लोग तो यह मानते हैं कि ज्ञान की बातें करना ठीक हैं पर उस पर चलना केवल सन्यासियों को ही चाहिये।  इतना ही नहीं अगर कोई ज्ञानी सांसरिक विषयों में सीमित सक्रियता दिखाये तो उसका मजाक उड़ाते हैं।  धन, पद और प्रतिष्ठा की अंधीदौड़ में शामिल अज्ञानी लोगों के  समुदाय के लिये तत्वज्ञान का मतलब केवल सन्यास ही है।
      एक तो मनुष्य में वैसे ही आलस्य करने की प्रवृत्ति रहती है उस पर आज के विलासितापूर्ण साधनों ने पूरी तरह से उसे निष्क्रिय बना दिया है। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। हम इस सिद्धांत को विस्तृत रूप से देखें तो यह भी कहा जा सकता है कि आदमी अपनी देह को जिस वातावरण में रखता है वैसी ही उसकी बुद्धि भी रहती है।  विलासिता की वजह से देह की सक्रियता कम हो जाती है और ऐसे में मन तथा मस्तिष्क में स्फूर्ति रहने की आशा करना बेकार है।  वैसे भी देखा जाये तो अमीरों की वाचन क्षमता भले ही तीव्रतर हो पर पाचन क्षमता अत्यंत मद्धिम होती है। जब समाज पर विपत्ति आती है तो संघर्ष का बीड़ा कम धनवान और परिश्रमी लोग ही उठाते हैं।  कहा जाता है कि हमारे देश में प्रभावशाली अमीरों की संख्या बढ़ रही है तो इसका मतलब यह भी होता है कि संघर्षशील और संयमशील लोगों उस अनुपात में कम हो रहे हैं।

भर्तृहरि नीति  शतक में कहा गया है कि
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बौद्धारो मत्सरग्रस्ताः प्रभवः स्मयदूषिताः।
अबोधेपहताश्चान्ये जीर्णमंगे संभाषिताम्।।
     हिन्दी में भावार्थ-विद्वान ईर्ष्या, प्रभावशाली अहंकार और अन्य लोग अज्ञान से पीड़ित होते हैं। ऐसे ज्ञानी के लिये जीवन एकाकी होने के साथ ही उसकी समझ घुटकर रह जाती है।

      पूरा विश्व समाज तीन भागों में बंटा है।  सबसे पहले धन, पद और बाहुबलियों का क्रम में स्थान आता है। उसके बाद उनके प्रायोजित बुद्धिजीवी अपने आकाओं के हितों के अनुसार सामान्य लोगों पर नियंत्रण स्थापित कर अपने मार्गदर्शन में समाज चला रहे हैं। पूरे विश्व में व्यवसायिक कंपनियों ने अपना राज्य इस तरह स्थापित कर लिया है कि आमजनों को इसका आभास तक नहीं होता।  फिल्म, खेल, टीवी चैनल और परिवहन के साधनों से लेकर तक किराने के खेरिज व्यापार तक पर उन्होंने नियंत्रण कर लिया है। इतना ही नहीं वह धार्मिक, सामाजिक, राजकीय तथा कला संस्थाओं पर इस तरह नियंत्रण कर लिया है कि किसी को इस बात का आभास भी नहीं हो सकता कि राजधानियों से लेकर गांवों तक उनका वर्चस्व चल रहा है।  सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं का हाल यह है कि उनके कर्ताधर्ता समाज को सुप्तावस्था में डालने वाले इन पूंजीपतियों से ही  चंदा लेकर समाज को जगाने के लिये औपचारिक कार्यक्रम कर इन्हीं के उत्पादों का प्रचार करते हैं। ऐसा नहीं है कि समझदार लोगों को इसका आभास नहीं है पर उनकी सुनता कौन है?
      अक्सर लोग यह कहते हैं कि समाज की वर्तमान दुर्दशा के लिये सज्जनों  की निष्क्रियता जिम्मेदार है पर यही प्रचार इन पूंजीपतियों के प्रायोजित बुद्धिजीवी ही करते हैं।  अगर लोगों को समझाया जाये तो ज्ञान की बात पर सहमति में सिर सभी हिलाते हैं पर चलने की बात की जाये तो लाचारी दिखाने में भी नहीं चूकते।  इसलिये सबसे बेहतर यही है कि ज्ञानार्जन कर स्वयं ही उस राह पर चलें। कम से कम यह गलतफहमी न पालें कि आप अपने श्रीमुख से किसी को उपदेश देकर सुधार सकते हैं।  यह अलग बात है कि पाश्चात्य शास्त्रों के ज्ञान से संपन्न बुद्धिजीवी सारे समाज को देवता बना देने का सपना दिखाते रहते हैं।

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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