आमतौर से आत्मप्रशंसा करने की प्रवृत्ति सभी
इंसानों में स्वाभाविक रूप से होती है पर
जिन लोगों का व्यवहार असंतुलित तथा विचार संकीर्ण होते हैं उनके अंदर बिना कोई खास
काम किये सम्मान पाने का मोह ज्यादा ही होता है।
अपने दुर्गुणों के कारण वह हमेशा संकट में रहते हैं पर दूसरों के सामने इस
तरह प्रदर्शित करते हैं जैसे कि वह कोई विशिष्ट व्यक्तित्व के स्वामी हों। यह अलग बात है कि एकांत में उनके चेहरे पर
हवाईयां उड़ रही होती हैं।
कविवर रहीम कहते हैं कि--------ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु।ज्यों तिय कुच आपन गहे, आपु बड़ाई आपु।।हिन्दी में भावार्थ-यदि कोई व्यक्ति रूखा व्यवहार करे तो समझ लेना चाहिये कि वह अंदर किसी महा संताप का सामना कर रहा है। ऐसे लोग आत्मप्रवंचना करते हुए केवल अपनी बात ही कहते हैं।
जिन लोगों के अंदर सद्गुणों का भंडार
होता है वह उसको दिखाने की बजाय उसका
उपयोग करते हुए सभी से न केवल अच्छे
व्यवहार की नीति पर चलते हैं वरन् अपने विचारों को भी पवित्र रखते हैं। उनकी
सांसरिक विषयों के साथ अध्यात्मिक ज्ञान में भी रुचि रहती है। जिन लोगों का
संपूर्ण दिन सांसरिक विषयों में बीतता है उन पर केवल माया का प्रभाव रहता है। अध्यात्मिक ज्ञान होने की बात तो दूर वह उसके
श्रवण, अध्ययन और चिंत्तन से भी बचते हैं। सच बात तो यह है कि बिना अध्यात्मिक ज्ञान के
मन में शांति हो ही नहीं सकती इसलिये अज्ञानी लोग अपना तनाव दूसरों पर डालने का
प्रयास करते हैं। अपने खालीपन को वह दूसरों के विषयों में दोष से भरना चाहते हैं।
परनिंदा, ईर्ष्या, अहंकार तथा आत्मप्रवंचना से कभी किसी को प्रशंसा नहीं मिलती वरन् पीठ पीछे
लोग मजाक बनाते हैं। इसलिये जहां तक हो
सके अपने अंदर अध्यात्मिक साधना की प्रक्रिया से ज्ञान का सृजन करना चाहिये।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment