हमारे देश में कुछ लोगों को प्रसिद्धि केवल
इसलिये मिली है क्योंकि वह भारतीय धर्म ग्रंथों को बेकार का विषय मानते हुए उसके
विरुद्ध प्रचार में लगे रहते हैं। इसके साथ ही कुछ लोग भारत में कर्मकांड के नाम
पर होने वाली क्रियाओं को अंधविश्वास बताकर उनसे दूर रहने का अभियान चलाकर भी
प्रसिद्ध हुए हैं। सच बात तो यह है कि अंग्रेजी पद्धति में सराबोर विद्वानों से यह
आशा तो करना भी नहीं चाहिये कि वह भारतीय अध्यात्म ग्रंथों के मिलने वाली सामग्री
का अध्ययन करें। मुख्य बात यह है कि भारतीय
धर्म को हिन्दू धर्म कहकर उन्होंने इसे सीमित बना दिया है। सच बात तो यह है कि धर्म का कोई नाम नहीं होता।
अगर हम श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करें तो उसमें कहीं भी हिन्दू धर्म का नाम
नहीं दिया गया। उसका सार यही है कि यदि
आचरण में अगर नियम का पालन किया जाये तो वह धर्म है और स्वच्छंद व्यवहार अंततः
अधर्म का रूप ले ही लेता है। दूसरी बात यह
भी कि श्रीगीता में कहीं भी अंधविश्वास वाली बात नहीं कही गयी है यह अलग बात है कि
उसके विषय में सिद्ध होने का दावा करने वाले पेशेवर प्रवचनकर्ता उसके संदेशों का
उपयोग चालाकी से अपने शिष्यों से अपनी सेवा
कराने के लिये उपयोग करते हैं। इसमें खासतौर से गुरुजनों की सेवा वाली बात
आती है। सारे गुरु केवल इसी इर्दगिर्द
अपनी शिष्यों को घुमाते रहते हैं।
उसी तरह वेदों का भी कुछ विद्वान जमकर विरोध
करते हैं। स्थिति यह है कि अनेक लोगों के
सामने तो वेदों का नाम लेना भी गलती लगती है।
बहरहाल इस तरह समाज को भारतीय अध्यात्म से परे कर दिया है और इससे लोगों का
मन इधर से उधर भटकता है और वह कृत्रिम तत्वों पर विश्वास रखने लगते हैं जिसे हमारे
नवीन समाज सुधारक अंधविश्वास कहते हैं। अनेक लोगों ने तो अंधविश्वासों के विरुद्ध
अभियान चलाकर नाम कमाया है पर ऐसे लोगों को यह समझ में नहीं आती कि विश्वास में
धोखा हो सकता है और होता भी है पर परेशान हाल आदमी का मन जब भटकता है तो वह उसे
कहीं भी ले जा सकता है। हम लोगों से कहें
कि इस पर विश्वास मत करो पर इससे पहले उनको यह बताना जरूरी है कि वह किस पर
विश्वास करें? कथित अंधविश्वास
विरोधी आदमी के मन का विज्ञान नहीं जानते। वह अगर यह मानते हैं कि समाज में कुछ
लोग अंधविश्वासी हैं और उन्हेें रोकना जरूरी है र्तो स्वयं ही गलती पर हैं। उन्हें कथित अंधविश्वास की जगह विश्वास की
स्थापना करनी होगी। उसके बिना उनका अंधविश्वास विरोधी अभियान कभी सफल नहीं हो
सकता।
यजुर्वेद में कहा गया है कि
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दृते छंह मा।
ज्योवते संदृशि जीव्यासं ज्योवते सदृशि जीष्यासम्।।
हिन्दी में भावार्थ-हे समर्थ! मुझे बलवान बनाओ। लोग मुझे तथा में
उनको मित्र दृष्टि से देखें।
मनसः कामंमाकृतिं वाचः सत्यमशीप।
हिन्दी में भावार्थ-मननशील अंतकरण की इच्छा और अभिप्राय जानने के
साथ ही सत्य भाषण करूं।
अगर समाज में जीवन के प्रति विश्वास
कायम करना है तो उसे भारतीय अध्यात्म ज्ञान की धारा से जोड़ना ही होगा। यहां तक कि
वेदों में जो संदेश आज भी प्रासांगिक हैं उनकी चर्चा सार्वजनिक रूप से करना ही
होगी। वेदों में अनेक ऐसे मंत्र हैं जिनका जाप करने से भले ही प्रत्यक्ष लाभ न
होता पर उनसे जो मानसिक दृढ़ता आती है उससे सांसरिक विषयों में उपलब्धि अवश्य होती
है। अगर मनुष्य आचरण, विचार
कार्यशैली में दृढ़ता नहीं होगी तो उसे सफलता नहीं मिल सकती। वेदों में जो मंत्र हैं उनके जाप से यह संभव है
कि मानसिक दृढ़ता आये जिसकी आजकल समाज को बहुत आवश्यकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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