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Saturday, March 23, 2013

पतंजलि योग विज्ञान-बुद्धि और आत्मा के प्रथक होने पर समाधि की अनुभूति (patanjali yoga scinse or vigyan-budhi aur man ke prathak hone kee anubhuti par samadhi)

    हमारी देह एक है पर उसमें तमाम तरह की हड्डियां और नसें है जो उसे धारण करने के साथ ही उसे संचालित भी करती है। देह को चलाने के लिये बुद्धि के साथ मन भी सक्रिय रहता हैं।  सबसे बड़ी बात यह कि इन सबको धारण करने वाला अदृश्य पुरुष या आत्मा है जो हम स्वयं होते हैं।  योगासन तथा प्राणायाम के बाद जब देह के साथ ही मन विकार रहित हो जाता है तब ध्यान के माध्यम से हम उस परम पुरुष के साथ अपने अंदर साक्षात्कार कर सकते हैं। जब उससे साक्षात्कार होता है तब  पता लगता है कि वह हम स्वयं हैं।  इसके बाद यह आभास होता है कि हमारी बुद्धि और मन प्रथक विषय हैं जिनकी चंचलता के गुण की समझ आने पर जीवन में भटकाव से बचा जा सकता है।  हमारा मन ही हमारी देह का संचालन कर रहा है। इस  तत्व ज्ञान स्थित होना ही समाधि का सर्वोत्म रूप है। जब किसी साधक को इस तरह की समाधि लगाने का अभ्यास हो जाता है तब वह अपने हृदय के भावों पर नियंत्रण कर लेता है। वह दृष्टा के रूप में जीवन में सक्रिय रहते हुए भी अपने अंदर कर्ता का अहंकार नहीं आने देता।
पतंजलि योग विज्ञान में कहा गया है कि
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सत्तवपुरुषमान्यताख्यातिमात्रस्य सर्वभावधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वं च।।
     हिन्दी मे भावार्थ-बुद्धि और आत्मा के भिन्न होने की अनुभूति का ज्ञान जब समाधि में होता है तब योगी का सभी भावों पर नियंत्रण हो जाता है। वह सर्वज्ञ हो जाता है।
         भारतीय योग विद्या एक ऐसा विज्ञान है जिसका अभी विशद अध्ययन किया जाना आवश्यक है। देखा यह जा  रहा है कि कुछ योग शिक्षक अपने आपको ज्ञानी के रूप मे प्रस्तुत कर अध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हो रहे हैं। उनका लक्ष्य केवल अपने व्यवसायिक हित साधना है। हमारा उद्देश्य उनकी आलोचना करना नहीं बल्कि यह बताना है कि योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करने से हमें देह, बुद्धि और मन के शुद्धता की अनुभूति तो होती है पर उसके बाद अपने समय को उचित ढंग से व्यतीत करने का ज्ञान नहीं रहता।  इसके लिये यह जरूरी है कि पतंजलि योग विज्ञान  के आठों भागों का अध्ययन करने के साथ ही समय मिलने पर श्रीमद्भागवत गीता का भी अध्ययन करना चाहिये।  हमें योग विद्या में पारंगत होने के बाद सत्संग में शामिल होने के साथ ही अपने प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन भी अवश्य करें ताकि जिंदगी बुद्धिमानी से गुजरे न कि पेशेवर लोग हमें अध्यात्म के नाम पर बुद्ध बनायें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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