इस संसार में सारे रिश्ते स्वार्थों से बनते हैं। उनका निर्वाह भी स्वार्थों से ही होता है। स्वार्थ पूरा न होने पर अपने रिश्ते भी गैर जैसे हो जाते हैं।इस संसार का सबसे बड़ा सत्य यही है कि मूलतः हर सामान्य आदमी अपने स्वार्थ की वजह से दूसरों के साथ संबंध बनाता है। वह उन्हीं से संबंध निभाता है जिससे उसे अपनी अपेक्षायें पूरी होने की संभावना रहती है। यह सभी जानते हैं पर अज्ञानी लोग समाज के स्वार्थी होने का रोना होते हुए अपनी मतलबपरस्ती को जायज ठहराते हैं जबकि ज्ञानी मनुष्य निष्काम भाव से दूसरों की सहायता के लिये तत्पर रहते हैं क्योंकि उनके मन में अपने कर्म का फल पाने की आशा नहीं रहती। धर्म, अध्यात्म और संस्कृति के नाम पर हम भले ही परिवार और समाज क एकरूप होने का भ्रम पाल लें पर सत्य यही है कि स्वार्थ ही सभी प्रकार के संबंधों का आधार होता है।
इस संसार में जिसके पास संपत्ति, वैभव, पद, प्रतिष्ठा और शक्ति है उससे संबंध रखने के लिये सभी आतुर होते हैं। निरीह, अल्प धनवान, सादगी पसंद और सत्य मार्ग का अनुसरण करने वाले लोगों के मित्र अत्यंत कम होते हैं। यह अलग बात है कि जिन लोगों के पास धन, पद, प्रतिष्ठा और आकर्षण है उनको यह भ्रम रहता है कि उनके चाहने वाले बहुत हैं। वह यह सच नहीं जानते कि इस संसार में पाखंड का बोलबाला है।
कविवर रहीम कहते हैं कि
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कहि ‘रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहुत रीत।
बिपत्ति कसौटी ज कसे, ते ही सांचे मीत।।
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कहि ‘रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहुत रीत।
बिपत्ति कसौटी ज कसे, ते ही सांचे मीत।।
‘‘इस संसार में सभी लोग उसके सगे हैं जिसके पास संपत्ति है। धनवान आदमी के सभी मित्र बनते हैं मगर आपातकाल में जो काम आये वही सच्चा मित्र कहलाता है।
काहु ‘‘रहीम’ कैसे बनै, अनहोनी ह्वै जाय।
मिला रहै औ ना मिलै, तासो कहा बसाय।।
मिला रहै औ ना मिलै, तासो कहा बसाय।।
‘‘अनहोनी होने पर बात नहीं बन सकती। किसी व्यक्ति के पास होने पर भी अगर उससे आत्मीयता का भाव नहीं रहता तो उसे संबंध कैसे निभाया जा सकता है।
इस सत्य को जानकर दूसरे मनुष्यो के साथ अपने संबंध अत्यंत सतर्कता बरतते हुए बनाना चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि हमारे साथ दोस्ती और रिश्ते का दंभ भरने वालों के साथ हमारी वैचारिक, स्वाभाविक तथा आचरण के आधार पर समानता है कि नहीं। आमतौर से विपरीत व्यक्तित्व के लोगों के बीच आपसी संबंध अधिक समय तक नहीं चलता। निष्काम भाव से काम करने वाले मनुष्य बुरा अवसर आने पर पर निभाते हैं पर कामनाओं से भरपूर आदमी उस समय मुंह फेर जाता है। अतः जिनसे मानसिक रूप से समानता के आधार पर संबंध निर्मित न हो सके उनसे दूर रहना ही श्रेयस्कर है। यह अलग बात है कि उनको इस बात का आभास नहीं होने देना चाहिए।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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