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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, November 21, 2010

मांस की बरफी-हिन्दी व्यंग्य कविता (maans ki barfi-hindi vyangya kavita)

बेईमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ
दिखावे की जंग वह लड़ रहे हैं,
पर उनकी तलवारें म्यान में रखी हैं।
कमीज की आस्तीनें ऊपर वह कर रहे हैंे,
जैसे जीत की राह में बढ़ रहे हैं,
हकीकत नहीं है उनका यह नाटक
सभी के मुंह लग गया है खून
दूसरे के मांस की बरफी सभी ने चखी है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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