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Saturday, July 17, 2010

श्री गुरुवाणी-कलह बहुत बुरी बात है (shri guruvani-kalak buri bat hai)

यह मनुष्य स्वभाव है कि वह अपनी निंदा या आलोचना अपने सामने सह नहीं पाता। स्थिति यह है कि आत्मीय मित्रों या परिवार के सदस्यों की आलोचना ही किसी से सहन नहीं होती। इसके अलावा संसार में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको दूसरों के दोष ढूंढकर उनका बखान करने में मजा आता है। कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरे के दर्द या पीड़ा का मजाक सामने ही उड़ाते हैं। ऐसे लोग अज्ञान में जीते हैं अतः उनसे दूरी बनाये रखना ही ठीक है। अगर ऐसे लोगों से वाद विवाद करेंगे तो झगड़ा बढ़ेगा संभव है वह हिंसा में बदल जाये।
कलह बुरी संसारि।’
हिन्दी में भावार्थ-
संसार में कलह बुरी चीज है।
‘झगरु कीए झगरउ पावा।‘
हिन्दी में भावार्थ-
झगड़ा करने से झगड़ा ही हासिल होता है।
‘उना पासि दुआसि न भिटीअै जिन अंतरि क्रोधु चंडालु।’
हिन्दी में भावार्थ-
जिन मनुष्यों के हृदय में क्रोध रूपी चंडाल रहता है उनके पास कभी न जाओ।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अगर इस संसार की गतिविधियों का अवलोकन ध्यान से करें तो पायेंगे कि अधिकतर झगड़े बिना बात के होते हैं। संत कबीर दास जी भी कह गये हैं कि ‘ न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा।’ हमारे देश में मुकदमों की संख्या बहुत है। कई मुकदमे तो ऐसे हैं जिनको दायर करने वालों की तीन तीन और चार पीढ़ियां गुजर गयी हैं पर उनका निपटारा नहीं हुआ। इसका कारण यह है कि लोग जरा जरा सी बात पर लड़ पड़ते हैं और जिन विवादों का निपटारा बातचीत और आपसी सहयोग से हो सकता है उसके लिये झगड़ा करते हैं। अहंकार वश अपने आपको श्रेष्ठ और विजेता साबित करने के लिये वह किसी भी हद तक चले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि झगड़ा बढ़ जाता है। जिसमें धन, समय, और ऊर्जा का व्यर्थ क्षय होता है।
इतना ही नहीं जिन लोगों की छबि बाहूबली होने के साथ अनाचारी और दुराचारी की है लोग अपनी संभावित सरुक्षा के लिये उनसे संपर्क बनाते हैं। जबकि होना यह चाहिये कि उनसे दूर रहा जाये क्योंकि ऐसे लोग अपने अहंकार वश क्रोध में आकर कभी भी किसी पर आक्रमण कर सकते हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि जहां तक धन, पद तथा बाहूबल से संपन्न लोगों से मानवता की अपेक्षा नहीं करना चाहिये जब तक व्यवहार से उनके उत्तम पुरुष होने की अनुभूति न हो। निम्न प्रकृत्ति के लोगों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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