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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Tuesday, May 28, 2019

वादे के पुलिंदे पकडा़ दिये जकड़े रहो-दीपकबापूवाणी (Vade ki pulinde pakda diye-DeepakBapuWani)

समय पर दोस्ती दिखाना है शातिर अंदाज़, हर इंसान में बसा है एक चालाक बाज़ं
मुंह से आदर्शों की बात करते सब, ‘दीपकबापू’ छिपाते अपने स्वार्थ साधने के राज़।।
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लोकतंत्र में बोलने की आजादी चाहिये, वक्ता गाली देने का आदी होना चाहिये।
‘दीपकबापू’ वोट की जंग में पागलपन चलाते, जीतें ठीक हारें तो बरबादी चाहिये।।
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वादे के पुलिंदे पकडा़ दिये जकड़े रहो, नारों के साथ झडे थमा दिये पकड़ रहो।
‘दीपकबापू’ जिंदगी चले सबकी भगवान भरोसे, राजा लोगों तुम चाहे अकड़े रहो।।
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मुंह से खाने की हद सब नहीं जानते, बोलने को आतुर अपना कद नहीं जानते।
बृहद गगन तले पाया छोटा हिस्सा, ‘दीपकबापू’ फूले हैं अपना पद नहीं जानते।।

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