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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, July 13, 2016

लाशों में ढूंढ रहे दुआ-हिन्दी व्यंग्य कविता(Lashon mein DhoonDh rahe Duaa-HindiSatirePoem)


दिल के दरवाजे
बंद कर लिये
प्यार की दस्तक
अब वह कहां सुनेंगे।

संबंध के बिगड़े हिसाब
दोस्त तब वफा के
वादे क्यों बुनेंगे।

कहें दीपकबापू जज़्बात से
जीने की आदत
नहीं रही इंसानों में
लाशों में ढूंढ रहे दुआ
जिंदादिली वह क्यों चुनेंगे।
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