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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Friday, September 25, 2015

मन की बात से लोकप्रियता में निरंतरता एक कारण-हिन्दी लेख(Man Ki Baat se Lokpriyat mein nirantarta ek karan-Hindi lekh)

                                   एक अमेरिकी अनुसंधान संस्था के अनुसार भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। इस पर अनेक लोगों को हैरानी होती है। आमतौर से राजसी कर्म में लगे लोगों की लोकप्रियता समय के साथ गिरती जाती है जबकि श्रीनरेंद्रमोदी के मामले में यह लक्षण अभी तक नहीं देखा गया। अनुसंधान संस्था ने इस लोकप्रियता में निरंतरता के कारकों का पता नहीं लगाया पर हम जैसे अध्यात्मिक साधकों के लिये यह लोकप्रियता जनता से नियमित संवाद के कारण बनी हुई है।  खासतौर से वह नियमित रूप से रेडियो के माध्यम से जो मन की बात करते हैं उससे आमजन से उनकी करीबी अभी भी बनी हुई है।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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वार्ता प्रजा सधयन्ति वार्त वै लोक संश्रय।
प्रजायां व्यसनस्थायां न किञ्चिदपि सिध्यति।।
हिन्दी में भावार्थ-वार्ता ही प्रजा को साधती है, वार्ता ही लोक को आश्रित करती है। यदि व्यसनी हो जाये तो कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता।
                                   राजसी कर्म एक ऐसा विषय है जिसमें सभी को एक साथ प्रसन्न नहीं रखा जा सकता है।  लोग आशा रखते हैं किसी की पूरी होती तो किसी को निराशा हाथ आती है।  ऐसी स्थिति से निपटने का एक ही उपाय रहता है कि गुड़ न दे तो गुड़ जैसी बात दे।  आमतौर जीवन निर्वाह के लिये राजसी कर्म करना ही पड़ता है। हर व्यक्ति अपने परिवार, समाज, या सार्वजनिक जीवन में राजसी पद पर होता ही है। ऐसे में उसे अपने पर आश्रित लोगों के साथ सदैव वार्ता करते रहना चाहिये।  किसी को उसकी सफलता पर बधाई तो देना चाहिये पर निराश व्यक्ति का भी मनोबल बढ़ाना भी आवश्यक है।  मनुष्य अपनी वाणी से न केवल अपने बल्कि दूसरे के भी काम सिद्ध कर सकता है पर अगर वह व्यसनी हो जाये तो सारे प्रयास निरर्थक हो जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Wednesday, September 16, 2015

छिपाने के बहाने करते-हिन्दी कविता(Chhipane ke bahane karate-HindiPoem)


काम करना आता नहीं
अपनी कमजोरी
छिपाने के बहाने करते।

ज़माने के भले का ठेका लिया
कमजोर नीयत है
छिपाने के बहाने करते।

कहें दीपकबापू नकारा लोगों की
मधुर बातों से
कई बार धोखा खाया
अब तो डराती है
सभ्य चेहरे की भी छाया
होठों पर हंसी होती
वही दिल के कुटिल इरादे
छिपाने के बहाने करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
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Friday, September 11, 2015

हिन्दी में लिखना भी एक तरह से व्यसन है-14 सितंबर 2015 पर हिन्दी दिवस पर नया पाठ(Writting ih Hindi As Adiction-New post on hindi diwas, hindi day,specil hindi article)

                                    एक सप्ताह में अगर किसी ब्लॉग लेखक के पाठ अगर अंतर्जाल पर दो लाख से ज्यादा पाठकों के सामने दिखते हैं तो उसकी लोकप्रियता की कौनसी श्रेणी में रखना चाहिये?
14 सितम्बर हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हम अंतर्जाल पर सन् 2007 से हिन्दी दिवस पर अनेक पाठ लिख चुके हैं। हमें यह पता नहीं है कि इंटरनेट पर अन्य हिन्दी लेखकों की क्या स्थिति है पर इतना जानते हैं कि अगर हिन्दी की बात हो तो कम से कम हमें प्रोत्साहित करने वाला एक भी शख्स नहीं मिला।  अगर स्वप्रेरणा और लेखन का व्यसन न होता तो शायद निरंतर नहीं लिख पाते।  आखिर हमने अंतर्जाल पर लिखते हुए क्या पाया? अगर अर्थ की बात है तो सब निरर्थक रहा पर अगर ज्ञान की बात है तो वह स्वर्णिम भंडार बढ़ता ही रहा है।  कबीर, चाणक्य, विदुर, भर्तृहरि, रहीम, मनु और कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर जितना समझा उससे कम ही लिख पाये।  श्रीमद्भागवत गीता और गुरुग्रंथसाहिब के अभ्यास ने तो मानसिक रूप से इतना परिपक्व बना दिया है कि अपने लिखे पाठों की प्रतिक्रिया के इंतजार अब आंखें या मन नहीं थकाते। लिखने में परिश्रम बहुत होता है पर लेखन के व्यसन ने हमेशा ही साथ दिया।
                                   दरअसल हमने यह पाठ 14 सितंबर हिन्दी दिवस 2015 के अवसर पर अपने ब्लॉगों पर पाठक संख्या की बढ़ती संख्या को देखते हुए लिखा। कल सभी ब्लाग पर करीब 20 हजार पाठ पाठन पाठक संख्या थी।  13 सितंबर तक यह संख्या चालीस हजार तक पहुंच सकती है।  करीब एक सप्ताह में दो लाख से अधिक पाठक इस लेखक के पाठों के संपर्क में आयेंगे। असंगठित, स्वतंत्र और अध्यात्मिक लेखक होने के नाते इतनी संख्या अंतर्जाल पर जुटाना अपने आप में एक जोरदार अनुभव होगा। हिन्दी में लिखने के व्यसन का आनंद इसी हिन्दी सप्ताह में अधिक ही आता है।
इधर विश्व हिन्दी सम्मेलन हो रहा है इसमें इस बात पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिये कि अगली पीढ़ी कागज पर नहीं वरन् कंप्यूटर अंतर्जाल के लिये लिखेगी। अंतर्जाल पर हिन्दी लिखने की स्वाभाविक सुविधायें जुटाने का विचार विश्वहिन्दीसम्मेलन में होना चाहिये। शेष लिखते ही रहेेंगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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Wednesday, September 02, 2015

आज ट्विटर पर चर्चा के विषयों पर संक्षिप्त लेख(today disscusion on Twitter public subject)


         मजदूर नेता निंरतर आंदोलन चलाने में दैहिक तथा मानसिक श्रम से बचने के लिये हड़ताल करवाते हैं। मजदूरनेता अब कमरे के अंदर और बाहर अलग रवैये के कारण श्रमजीवियों के विश्वासपात्र नहीं रहे। श्रम संगठनों के नेता भारतीय इतिहास में मजदूरों के हित के लिये हुए एक भी सफल आंदोलन का नाम नहीं बता सकते। हमारा मानना है कि प्रबंधक अगर श्रमिक वर्ग से से  सीधे संपर्क में रहकर उनकी समस्यायें हल करें तो मजदूर नेता बेकार हो जायेंगे। कथित श्रमिकनेता अधिकारी तथा कर्मचारी के बीच सेतु की बजाय दलाल बनकर अपना हित साधते हैं। उनकी विश्वसनीयता कम हुई है। हालांकि हमारा मध्यम तथा मजदूर वर्ग की खुशहाली के बिना देश खड़ा नहीं रह सकता इसलिये उस पर ध्यान देना चाहिये। बंद और हड़ताल से जनमानस में कर्मचारियों की छवि खराब होने के साथ सहानुभूति भी खत्म होती है।
          देश का प्रबंध दिल्ली से चले या नागपुर से आम आदमी को तो अपने हित से मतलब है। राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ एक सामाजिक संगठन है। समाज निर्माण में राजसीकर्म आवश्यक है जो राजसी बुद्धि से ही होते हैं। वनरैंकवनपैंशन पर राष्ट्रीयस्वयंसेवक संध के प्रयासों से यह जाहिर हो गया है कि वह राष्ट्रवाद का पोषक है। आमभारतीय नागरिक की दृष्टि में राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ में एक ऐसा संगठन है जो भारतीय ज्ञान, दर्शन और समाज की रक्षा के लिये काम करता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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