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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Monday, July 27, 2015

आतंकवाद के प्रचार में समाचार तथा बहस से मदद न करें.हिन्दी चिंत्तन लेख(atankwad muft ke vyapar par chal raha hai-hindi thought article)


             हमारा तो मानना है कि विश्व में आतंक एक ऐसा व्यापार बन गया है जो प्रचार की वजह से पनपा है। अगर प्रचार माध्यम आतंक की खबरों को लघु या संक्षिप्त रूप से प्रसारित करें और किसी तरह की बहस न आयोजित करें तो यकीनन आतंकवाद के व्यापारी ठंडे हो जायेंगे। अनेक अपराध विशेषज्ञ आतंकवाद के सीधे प्रसारण का विरोध करते रहें हैं पर लगता नहीं कि उनकी सुनी जाती है।  एक बात दूसरी बात यह भी है कि आतंकवाद के धनदाता भी संदेहास्पद हैं। हम देख रहे हैं कि सारे विश्व में पैसा चंद धनपतियों के हाथ में है। उन्हीं के पास प्रचार माध्यमों का स्वामित्व है। इतना ही नहीं टेलीफोन सहित समस्त संचार माध्यम भी उनके नियंत्रण मे हैं।  ऐसे में तो कभी कभी लगता है कि आतंकवादियों को यही धनपति अपने दो लक्ष्यों की पूर्ति के लिये पैसा देते हैं.एक तो इसलिये कि समाज उनके प्रचार माध्यमों की सनसनीखेज सामग्री से बंधा रहे दूसरा यह कि प्रशासन आतंक से लड़ने में लगा रहे और उसकी आड़ में धनपतियों के ही संरक्षण में चल रहे काले धंधे चलते रहें।
                              वैसे भी देखा गया है कि यह हमले भीड़ वाली जगहों पर किये जाते हैं जहां सामान्य लोगों के साथ ही छोटे पद वाले सुरक्षाकर्मी होते हैं। अधिक संख्या में हताहतों की संख्या होने से आतंकवादियों के दुष्कृत्य को प्रचार भी खूब मिलता है।  इन आतंकवादियों के प्रायोजित करने वालों के नाम पता करना कठिन जरूर है पर असंभव नहीं है पर जरूरत इच्छा शक्ति की है। इन आतंकियों को कीमती सामान की तस्करीए नशे के व्यापार तथा खेलों के सट्टे से अधिक धन मिलता है।  भारत में बढ़ते धन के साथ  अपराध भी बढ़े है साथ ही युवाओं में सट्टे और नशे की आदत बढ़ती जा रही है।  इससे जुड़े काली नीयत के व्यापारियों के लिये प्रशासन की सख्ती एक चुनौती होती है जब उसका ध्यान किसी बड़ी घटना की तरफ जाता है तो उनके संरक्षित अपराधी अपना काम करने लगते हैं। इतना ही नहीं आतंक और काले धंधे के व्यापारियों का गठजोड़ संभवत इतना शक्तिशाली है कि उसे अलग धनपति भी उनके दबाव के आगे बेबस होकर उन्हें हफ्ता देते हैं।
                              इस तरह के आतकंवाद से मुक्त होने के लिये यह आवश्यक है कि इसके प्रचार पर अधिक समय नहीं व्यय करना चाहिये। कम से कम सीधा प्रसारण तो किया ही नहीं जाना चाहिये।  अततः आतंकवाद का व्यापार मुफ्त के विज्ञापन पर ही चल रहा है। लोग इस प्रचार से डरते हैं और आतंकवादियों के प्रति कोई प्रतिकूल कदम उठाने का ख्याल नहीं करते। युवाओं को भी यह बात समझाना चाहिये वह नशे तथा खेलों के सट्टे से दूर रहें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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1 comment:

Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा said...

आतंकवाद पर बहस - आतंकवादियों के समर्थक एवं पोषक - #Presstitutes द्वारा सुनियोजित षड्यन्त्र के अंतर्गत प्रायोजित होती है - एवं बहस का एकमात्र गुप्त ध्येय आतंकवादियों के समर्थन में 80% मूर्ख जनता का - आतंकवादियों के देशद्रोह - जघन्य हत्याओं एवं अन्य दुष्कर्मों से - मन परिवर्तन कर सहानुभूति बटोरना होता है ताकि प्रशासन पर दबाव बना कर आतंकवादियों को मुक्त कराना संभव हो |

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