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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Wednesday, April 15, 2015

भक्ति विरुद्ध आसक्ति-हिन्दी कविता(bhakti viruddh aasakti-hindi poem)

हमने तो भक्ति भाव से
प्रेम करने को कहा था
वह उसका अर्थ आसक्ति भाव से
लेने लगे थे।

कहें दीपक बापू मनुष्य मन
अब उंगलियों से
स्वचालित हो गया है,
उस पर काबू कर सके
ऐसा मस्तिष्क खो गया है,
हमने तो सामानों का मोल
बताकर विरक्ति के लिये कहा था
वह पैसे से खरीदकर
अपने त्याग की
शक्ति तोलने लगे थे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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