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Tuesday, August 14, 2012

पलटू महाराज का सन्देश-बराबरी करने से अच्छा है हार मन लेना

              वर्तमान युग के बाज़ार और प्रचारतंत्र के शक्तिशाली हथियारों के आगे आम आदमी लाचार और बेबस होता जा रहा है। टीवी, अखबार, मोबाइल, कंप्यूटर और फिल्मों का प्रभाव समाज में इस तरह हो गया है कि आम इंसान के अंदर स्वचिंत्तन का अभाव हो गया है। वह प्रचार के माध्यम से थोपे जा रहे विषयों को ही सबकुछ मानकर उसमें लिप्त होकर अपने मस्तिष्क में तनाव ला रहा है जिस कारण अनेक रोग पैदा हो रहे हैं। इधर भोग विलासिता की वस्तुओं में नित नित नये मॉडल आ जाते हैं तो एक माह पहले ही खरीदे गये सामान प्राचीन युग के प्रतीत होते है। इस कारण लोग विषयों के पीछे भागते जा रहे हैं। ऐसे में अपने चरित्र पर विचार करने का किसी के पास समय नहीं है पर समाज में सम्मान पाने का मोह सभी को है। इसका उपाय लोगों ने यह ढूंढ लिया है कि दूसरे की निंदा कर अपने को बड़ा साबित करो। यह निहायत घटिया प्रयास है जिसे करते हुए हम लोगों को देख सकते हैं। आत्म मंथन करें तो अपने अंदर भी यह दोष दिखाई देगा।
             पलटू महाराज कहते हैं कि
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           ‘पलटू’ यह सांची कहैं, अपने मन को फेर।
            तुझे पराई क्या परी, अपनी ओर निबेर।।
           ‘‘सच बात तो यह है कि मनुष्य अपने मन का विचार करे। पराई बातों में रुचि लेने से कोई लाभ नहीं बल्कि अपने गुण दोष पर दृष्टिपात करना ही ठीक है।                                                 सरबरि कबहूं न कीजिये, सबसे रहिये हार।
                                                      ‘पलटू’ ऐसे दास सों, डरिये बारबार।।
         ‘‘सबसे बराबरी करने का विचार छोड़कर हार मान लेना ही बेहतर हैं। जो ऐसा करता है व्यक्ति से डरना चाहिए क्योंकि दूसरों के घर की रौशनी देखकर अपना घर न चलाने वाला ही मानसिक रूप से शक्तिशाली होता है।’’
           चाणक्य महाराज का कहना है कि अगर किसी व्यक्ति को लोकप्रिय होना है तो वह निंदा करना छोड़ दे। हमारा अध्यात्मिक दर्शन कहता है कि दूसरों के सुख को ईर्ष्या न करें। जो लोग ज्ञानी हैं वह सादगी से जीवन जीते हैं उनको कमजोर या गरीब मानने वालों की आज के समाज में कमीनहीं है पर सच यह है कि ऐसे त्यागी और ज्ञानी आम इंसान से अधिक शक्तिशाली होते है। विषयों में आसाक्ति मनुष्य को मानसिक रूप से कमजोर बनाती है पर निष्काम भाव से हृदय में साहस का भाव आता है। अतः उनका सम्मान करना चाहिए। एक बात याद रखें उपभोग प्रवृत्ति कभी शक्ति और स्वास्थ्य का प्रमाण नहीं होती।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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