हम आत्मा हैं जिसने देह धारण की है। हम इस देह के माध्यम से जो कर्म और व्यवहार करते हैं उसके अनुसार ही मन, बुद्धि और विचारों पर प्रभाव पड़ता है। हम जिन विषयों से इंद्रियों के माध्यम से संपर्क करते हैं वह हमारे अंतर्मन प्रभावित करते हैं। इस आधार पर हम कह सकते है कि जैसा अन्न वैसा धन, जैसा पानी वैसी वाणी और जैसा धन वैसा मन।
हम जैसा भोजन ग्रहण करते हैं उसके लिये धनार्जन, उसके सृजन तथा निर्माण की पूरी प्रक्रिया का हम पर प्रभाव पड़ता है। अगर हम चाहते हैं कि हम सात्विक विचारों को अपने मन में धारण करें, हमारे अंदर अध्यात्मिक ज्ञान का संचार हो और हमारे व्यक्तित्व में निखार आये तो भोजन पर ध्यान देना चाहिये। इस विषय पर संत कबीरदास जी कहते हैं कि
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जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय
"जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।"
अधिक भोजना करना बुरा है तो कम भोजन करना भी अच्छा नहीं है। अधिक मोटा, बासी, तथा स्वादिष्ट पर अपचनीय भोजन कभी भी तन और मन को प्रसन्न नहीं कर सकता। उसी तरह जिस प्रकार के भोजन से हम अपने अंदर तनाव अनुभव करते हैं हम उसके स्वादिष्ट होने के कारण ग्रहण करने में हमें झिझकते नहीं है। लगता है कि चलो थोड़ा खा लिया तो क्या बुराई है? यह विचार अत्यंत दुःखदायी है जो कि कालांतर में हमारी देह को हानि पहुंचाता है। अतः भोजन के विषय में हमेशा सतर्क रहना चाहिए। -------------
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय
"जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।"
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',ग्वालियर
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
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