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Tuesday, June 22, 2010

हिन्दू धर्म संदेश-वेद मंत्रों के जाप से मनोकामना पूरी होती है (ved mantra aur manokamna-hindu dharam sandesh)

अधियज्ञं ब्रह्म जपेदाधिदैविकमेव च।
आध्यात्मिकं च सतत। वेदान्ताभिहितं च यत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
वेदों में वर्णित यज्ञ तथा पूजा से संबंधित, आत्मा के विषय में संबंधित तथ वेदांत से संबंधित मंत्रों का धार्मिक मनुष्य को हमेशा जाप करते रहना चाहिए।

इदं शरणमज्ञानामिदमेव विजानताम्।
इदमन्विच्छतां स्वर्गमिदमानन्त्यमिच्छताम्।।
हिन्दी में भावार्थ-
मनुष्य ज्ञानी हो या अज्ञानी वेद मंत्रों को जपने से उसे इच्छित फल प्राप्त होता है। उसी तरह इनके जाप से स्वर्ग की इच्छा करने वालो को स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा करने वाले को मोक्ष प्राप्त करता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-वेदों का विषय बहुत व्यापक है। यह किसी एक काल में नहीं लिखे गये और न ही उनका कोई एक रचनाकार है। वेदों में उस हर कथन को स्थान दिया गया है जो विद्वानों द्वारा व्यक्त किया गया है। अतः अनेक जगह विरोधाभास है। इसके अलावा विभिन्न विद्वानों द्वारा अपनी तात्कालिक मनस्थिति क अनुसार प्रस्तुत विचारों के कारण वर्तमान समय में वह अप्रासंगिक भी दिखार्इ्र देते हैं। एक तरफ वेदों में दूसरों से कर्ज लेने का विरोध किया गया है तो वहीं चार्वाक ऋषि द्वारा कर्ज लेकर घी पियो जैसा संदेश भी दिखाई देता है-यह अलग बात है कि कुछ लोग उसका मजाक उड़ाते हैं पर उसका रहस्य कम लोग ं ही समझ पाये।
कहा जाता है कि वेदों में अस्सी फीसदी श्लोक सकाम भक्ति (अर्थात स्वर्ग दिलाने का लाभ)तथा बीस प्रतिशत मोक्ष (निष्काम भक्ति) से संबंधित हैं। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वर्ग से प्रीति रखने वाले वेदवाक्यों का उल्लंघन करने का संदेश देते हैं। समाज ने जिस तरह श्रीमद्भागवत गीता को स्वीकार किया उससे केवल बीस फीसदी वेदवाक्य ही उपयुक्त रह जाते हैं। उसके अलावा भी दैहिक जीवन सुविधा से गुजारने के लिये उसमें अनेक मंत्र है जिनके जाप से इस भौतिक संसार में लाभ होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि श्रीमद्भागवत ने सभी जाति, वर्ण, तथा स्त्री पुरुष में भेद से दूर रहने का संदेश दिया है इसलिये जाति, वर्ण तथा स्त्रियों के विषय में जो विरोधाभासी कथन है उनका महत्व अब नहीं रह गया है। भारतीय अध्यात्म दर्शन के विरोधी अभी भी उन संदेशों को गा रहे हैं जबकि श्रीमद्भागवत गीता ने उनके उल्लंधन करने का आदेश दिया गया है और समाज भी ऐसे विरोधाभासी संदेशों से दूर हो गया है। अतः आलोचकों की परवाह न करते हुए अपने जीवन के लिये उपयुक्त वेदमंत्रों का जाप करते रहना चाहिये जिनसे मन को शांति के साथ ही इच्छित फल भी प्राप्त होता है।
संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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