सावित्रांछान्ति होमाश्य कुर्यात्पर्वसु नित्यशः।
पितृंश्चैवाष्टकास्वर्चयेन्तिन्त्यमन्वष्टकासु च।।
हिन्दी में भावार्थ-अमावस्या, पूर्णमासी तथा अन्य त्यौहारों पर गायत्री मंत्र तथा शांति मंत्र का जाप अवश्यक करना चाहिये।
पितृंश्चैवाष्टकास्वर्चयेन्तिन्त्यमन्वष्टकासु च।।
हिन्दी में भावार्थ-अमावस्या, पूर्णमासी तथा अन्य त्यौहारों पर गायत्री मंत्र तथा शांति मंत्र का जाप अवश्यक करना चाहिये।
मंगलचारयुक्त्तः स्यात्प्रयतात्मजितेन्द्रियः।
जपेच्च जुहुयाच्यैव नित्यमग्निमतन्द्रितः।।
हिन्दी में भावार्थ-व्यक्ति को सदा शुभ कर्मों में प्रवृत्त रहकर, अपने शरीर को स्वच्छ तथा हृदय को पवित्र रखते हुए, आलस्य का त्यागकर सदैव जप तथा होम अवश्य करना चाहिए।
जपेच्च जुहुयाच्यैव नित्यमग्निमतन्द्रितः।।
हिन्दी में भावार्थ-व्यक्ति को सदा शुभ कर्मों में प्रवृत्त रहकर, अपने शरीर को स्वच्छ तथा हृदय को पवित्र रखते हुए, आलस्य का त्यागकर सदैव जप तथा होम अवश्य करना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सुबह का समय हमें अपने शरीर के अंदर स्थित विकार बाहर निकाल कर ऊर्जा संचय का अवसर प्रदान करने के साथ ही मन और विचारों की शुद्धता के लिये मंत्र जपने का अवसर प्रदान करता है। प्रातःकाल धर्म संचय, मध्यान्ह अर्थ संग्रह, सायंकाल मनोरंजन और रात्रि अस्थाई मोक्ष यानि निद्रा के लिये है। प्रातःकाल को धर्म संचय को छोड़कर बाकी तीनों का तो सभी उपयोग करते हैं। आजकल तो सुबह उठते ही चाय पीन का रिवाज चल गया है। चाय हमेशा ही वायु विकार पैदा करती है और हम उसका सेवन कर सुबह से ही अपने अंदर विकार एकत्रित करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देते हैं।
इसके विपरीत जो लोग प्रातःकाल सैर करने के बाद नहाधोकर पूजा आदि का कार्य करते हैं उन लोगों की वाणी और विचारों की शुद्धता देखने लायक होती है। प्रातःकाल जो योग साधना, प्राणायाम, ध्यान और मंत्रोच्चार करने वाले तो वास्तव में आदर्श जीवन जीते हैं। हालांकि सुबह सैर या जिम में जाकर व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक है पर जब हम उनका त्याग करते हैंे तो फिर शरीर बेडौल होने लगता है। इसके विपरीत योग साधना का प्रभाव लंबे समय तक रहता है। इसलिये योग साधना करना ही श्रेयस्कर है। उसका महत्व इस कारण भी ज्यादा है कि उसमें प्राणायाम, ध्यान और मंत्रोच्चार की प्रक्रिया भी शामिल होती है जिसका लाभ बहुत होता है। इस दौरान गायत्री और शांति मंत्र का जाप हृदय के प्रसन्नता प्रदान करता है। यदि यह मंत्र हृदय में धारण कर जाप किये जायें तो इससे मन में जो अलौकिक सुख प्राप्त होता है उसका शब्दिक वर्णन करना संभव नहीं है क्योंकि कई ऐसी अनुभुतियां हैं जो अवर्णनीय होती हैं।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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