आपा पर जब चींहिया, तब गुरु सिष व्यवहार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शब्द किसी का मूंह नहीं ताकता। वह तो चारों ओर निर्विघ्न विचरण करता है। जब शब्द ज्ञान से अपने पराये का ज्ञान होता है तब गुरु शिष्य का संबंध स्वतः स्थापित हो जाता है।
कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटु वचन बहुत बुरे होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- पिछले दिनों समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ कि अब लोगों में अपशब्द बोलना एक तरह से फैशन बनता जा रहा है। लोग अंतर्जाल पर गाली गलौच लिखना एक फैशन बना रहे हैं। यह वर्तमान विश्व समुदाय में अज्ञान और अहंकार की बढ़ती प्रवृत्ति का परिचायक है। पहले तो यह विचार करना जरूरी है कि हमारे शब्दों का प्रभाव किसी न किसी रूप में होता ही है। एक बात यह भी है कि हम जो शब्द बोलते हैं वह समाप्त नहीं हो जाता बल्कि हवा में तैरता रहता है। फिर समय पढ़ने पर वह उसी मुख की तरफ भी आता है जहां से बोला गया था। ऐसे में अगर हम अपने मुख से अपशब्द प्रवाहित करेंगे तो वह लौटकर कभी न कभी हमारे पास ही आने हैं। आज हम किसी से अपशब्द अपने मुख से बोलेंगे कल वही शब्द किसी अन्य द्वारा हमारे लिये बोलने पर लौट आयेगा। इस तरह तो अपशब्द बोलने और सुनने का क्रम कभी नहीं थमेगा।
इसलिये अच्छा यही है कि अपने मुख मधुर और दूसरे को प्रसन्न करने वाले शब्द बोलें जाये। लिखने का सौभाग्य मिले तो पाठक का हृदय प्रफुल्लित हो उठे ऐसें शब्द लिखें। पूरे विश्व समुदाय में गाली गलौच का प्रचलन कोई अच्छी बात नहीं है। ब्रिटेन हो या भारत या अमेरिका इस तरह की प्रवृत्ति ही विश्व में तनाव पैदा कर रही है। हम आज आतंकवाद और मादक द्रव्यों से विश्व समुदाय को बचाने का प्रयास कर रहे हैं पर इसके के लिये यह जरूरी है कि अपने शब्द ज्ञान का अहिंसक उपयोग करें तभी अन्य को समझा सकते हैं। शब्दों की अभिव्यक्ति में अभद्रता और अश्लीलता का प्रदर्शन न केवल दूसरे को दुःख देता है बल्कि अपनी छबि भी ख़राब करता है.
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
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