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Sunday, May 29, 2016

ध्यान से इंद्रियों का संयमित करें-पतंजलि योग साहित्य (Dhyan and Indiriyan-Patanjali yoga)

पतंजलि योग में कहा गया है कि
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‘श्रोन्नाकाशयोः सम्बंध दिव्यं श्रोन्नम्।‘
हिन्दी में भावार्थ-‘कान व आकाश के सम्बंध में संयम (ध्यान) करने से साधक के श्रोत्र शक्ति दिव्य हो जाती है।’
हम अपनी ही देह में स्थित जिन इंद्रियों के बारे में हम सामान्यतः नहीं जानते ध्यान के अभ्यास से उनकी शक्ति तथा कमजोरी दोनों का आभास होने लगता है। इससे हम स्वतः ही उनके सदुपयोग करने की कला सीख जाते हैं। साधक नासिक, कान, मुख तथा चक्षुओं के गुण व दुर्गुण का ज्ञान कर लेता है तब अधिक सतर्क होकर व्यवहार करता है। जिससे उसके जीवन मित्र अधिक विरोधी कम रह जाते हैं। सच बात तो यह है कि ध्यान से इंद्रियों में स्वतः ही संयम आता है। अगर देखा जाये तो हर मनुष्य उत्तेजना तथा तनाव में स्वयं अपनी हानि इसलिये करता है क्योंकि अपनी ही इंद्रियों के बारे में उसे ज्ञान नहीं होता जो कि स्वच्छंद रूप से विचरण करती हैं।
अत मनुष्य अगर ध्यान की क्रिया अपनाये तो वह इन इंद्रियों की उग्रता को कम कर जीवन में आनंद उठा सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

Saturday, May 07, 2016

सबीज समाधि से साधक सर्वज्ञ हो जाता है-पतंजलि योग दर्शन पर आधारित चिंत्तन लेखA Hindi Article based on PatanjaliYogaDarshan)

                         भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में समाधि की स्थिति भक्ति तथा ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति मानी गयी है।  समाधि में होने पर ही व्यक्ति का आत्मा परमात्मा व संसार की भिन्नता का अनुभव होता है। इसके अभ्यास से ही पता चलता है कि हम वह आत्मा है जो शरीर रूपी यंत्र पर सवार हैं। जिस तरह किसी वाहन का कुशल चालक उसे लक्ष्य तक पहुचाता है तो अनाड़ी दुर्घटना कर देता है। योगभ्यासी अपनी देह, मन वह विचारों को शुद्ध कर संसार में सहजता से विचरता हो तो भोगी हमेशा ही तनाव में रहता है। 
पतंजलि योग दर्शन में कहा गया है कि
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-’सत्तवपुरुषान्यतारव्यातिमात्रस्य सर्वभावविधष्ठानतृत्वं सर्वज्ञातृत्वं चं।।
हिन्दी में भावार्थ-बुद्धि तथा पुरुष इन दोनों में भिन्नतामात्र का ही जिसे ज्ञान होता है ऐसी सबीज समाधि को प्राप्त योगी सब भावों से युक्त सर्वज्ञ हो जाता है।
व्याख्या-हमारे यहां समाधि को लेकर अनेक भ्रम फैलाये जाते हैं। समाधि कोई देह की नहीं वरन् मन की स्थिति है। जब साधक को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उसकी देह में स्थित बुद्धि तथा आत्मा प्रथक हैं तब वह दृष्टा भाव की अनुभूति करता है। वह कुछ करते हुए भी स्वयं को अकर्ता समझता है। इससे उसकी बुद्धि के साथ ही मन पर भी नियंत्रण हो जाता है। ध्यान तथा धारण की क्रिया के दौरान जब साधक की बुद्धि में रजोगुण के साथ ही तमोगुण निष्क्रिय होते है जिससे सतोगुण का प्रभाव बढ़ जाता है। उस समय प्रकृत्ति व पुरुष के बीच भिन्नता का आभास होते ही उसके अंदर ज्ञान ज्योति प्रज्जवलित हो जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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