अभी हाल ही में नेपाल में आये भूकंप में अनेक देशों ने सहायता की।
सहानुभूति की वैश्विक धारा में सम्मिलत होने की बाध्यता के चलते पाकिस्तान ने भी
अपनी सहायता भेजी। उसने भोजन के रूप में
मांस भेजा जो न केवल नेपाल में वर्जित है वरन् वहां के हिन्दू तथा बौद्ध धर्म
मानने वालों के लिये अभक्ष्य है।
पाकिस्तान के रणनीतिकार इतने सीधे नहीं है कि उन्हें मालुम न हो कि नेपाल
में समुदाय वैचारिक रूप से उनके अनुकूल
नहीं वरन् प्रतिकूल है। एक तरह से उसने
नेपाली समुदाय का आपदाकाल में अपमान करने के लिये यह सब किया। जब विरोध उठा तो
उसने कहा कि वह हमने सहधर्मी लोगों की सहायता के लिये भेजा था। उसका यह वक्तव्य एक
अपराध को छिपाने के लिये दूसरा अपराध करने की प्रवृत्ति का ही परिचायक है।
वैश्विक संस्थाओं का नियम है कि वह धर्म तथा क्षेत्र के विचारों से ऊपर
उठकर आपदाकाल में सहायता करती हैं। पाकिस्तान और उसके सहधर्मी राष्ट्र अपने से इतर
धार्मिक विचाराधाराओं के प्रति असहिष्णुता का जिस तरह भाव रखते हैं वह छिपाने के
बावजूद कभी कभी सामने आ ही जाता है। पाकिस्तान ने नेपाल में सहायता के रूप में
मांस अपनी विचारधारा के अनुसार ही भेजा और उसका लक्ष्य यह साबित करना ही था कि वह
अपने धर्म का पालन कर रहा है-मदद के साथ मांस भेजकर दोनों ही लक्ष्य पूरे किये।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आसिक्तः पयास घृतेन न निम्बवुक्षो मधुरत्वमेति।।
हिन्दी में भावार्थ-दुष्ट व्यक्ति समझाये
जाने पर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता। उसी प्रकार जिस तरह दूध और घी से सींचे जाने पर
भी नीम का वृक्ष मधुरता को नहीं छोड़ता।
गृह्याऽसक्तस्य नो विद्या नो दया मासंभोजिन।
द्रव्यलुब्धस्य नो सत्यं स्त्रेणस्य न पवित्रता।।
हिन्दी में भावार्थ-गृहस्थी में आसक्त में
ज्ञान विद्या, मांस खाने में दया, द्रव्य लोभी में सत्य और विलासी में पवित्रता कभी हो ही नहीं सकती।
इस मामले में गलती नेपाल के रणनीतिकारों की है जो उन्होंने अपने चहेते चीन
के मित्र पाकिस्तान की मदद स्वीकार की। भारत हिन्दू बाहुल्य नेपालियों का सबसे
निकटस्थ तथा स्वाभाविक मित्र है पर पिछले कुछ समय से वहां के रणनीतिकार भारत से
परे रहकर चीन को खुश रखना चाहते थे। चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत के विरुद्ध कार्य
करते हैं-हालांकि यह हैरानी की बात है कि बौद्ध बाहुल्य चीन धार्मिक दृष्टि से
भारत का स्वाभाविक मित्र होना चाहिये जनवादी विचारधारा के चलते वहां के रणनीतिकार
तथा विद्वान कभी इसे स्वीकार नहीं करते। यही कारण है कि चीन का आसरा लेकर
पाकिस्तान इस क्षेत्र में अपनी धार्मिक विचाराधारा के प्रति अहंकार का भाव दिखाता
है। चीन स्वयं पाकिस्तान के सहधर्मी अपने नागरिकों के असंतोष से जूझ रहा है। यह
माना जाता है कि उनके विद्रोह के तार पाकिस्तान से ही जुड़े हैं। इसके बावजूद चीन
और नेपाल पाकिस्तान पर भरोसा करते हैं। जबकि सच यह है कि पाकिस्तान पश्चिम का ही
सगा है और पूर्वी राष्ट्र और विचाराधारा उसे अपने शत्रु लगते हैं। उसके इस भाव में
सुधार की भी कोई संभावना नहीं लगती। इसलिये सभी को सतर्क रहना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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