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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, April 30, 2015

हिन्दू अध्यात्मिक विचाराधारा सर्वाधिक वैज्ञानिक तत्वों से परिपूर्ण-हिन्दी चिंत्तन लेख(hindu adhyatmik vichardhara sarvadhik vaigyanik tatvon se paripoorn-hindi thought article)

हमारे देश में धार्मिक स्थानो पर तीर्थयात्रियों के जाने की परंपरा हमेशा रही है।  इन स्थानो पर पहले सेठ साहुकार धर्मशालायें तथा मंदिर बनाकर तीर्थयात्रियों के लिये प्रबंध करते थे। आज भी वृंदावन और हरिद्वार में अनेक प्राचीन धर्मशालायें और यात्रियों के लिये अन्य सुविधाजनक स्थान मौजूद देखे जा सकते है। यह अलग बात बात है कि आज के नये तीर्थयात्री श्रद्धा से अधिक पर्यटन के लिये धार्मिक स्थानों पर जाने लगे हैं जिससे धार्मिक स्थानों पर व्यवसायिक निवासों का अधिक उपयोग हो रहा है और प्राचीन धर्मशालायें और प्याऊ जीर्णशीर्ण होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं धार्मिक शहरों ने भी नये और पुराने का विभाजित रूप वैसे ही धारण कर लिया है जैसा कि अन्य शहरों में हुआ है।
उस दिन हमारा हरिद्वार दस वर्ष बाद जाना हुआ।  वहां हमने देखा कि शहर ने एकदम रूप बदल लिया है। तब मन में आस्था और मनोरंजन के बीच का अंतर पर चिंत्तन शुरु हुआ पर लगा कि यह सब व्यर्थ है। समय की धारा मनुष्य की सोच से ज्यादा प्रबल है। उससे भी ज्यादा है प्रकृत्ति का परिवर्तनीय मूल भाव जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया। यही स्थिति मनुष्य मन की भी है कि उसकी चंचलता सभी जानते हैं पर नियंत्रण करने के उपाय कोई नहीं कर पाता। हरिद्वार में  हर की पौड़ी सर्वाधिक महत्व का स्थान है पर पहले सेठ साहुकारों तथा निष्कामी संतों ने अनेक नये स्थान बनाकर हरिद्वार में तीर्थयात्रियों का आगमन नियमित बनाये रखने का प्रयास किया।  उनको पता था कि हर की पौड़ी पर ज्ञानी श्रद्धालु तो सदैव आयेंगे पर अन्य किस्म के लोगों में आकर्षण बनाये रखने के लिये हमेशा ही नवीन दर्शनीय स्थान बनाते रहने के प्रयास आवश्यक होंगे। यही कारण है कि वहां ढेर सारे नये मंदिर बन गये। अब वहां गंगा किनारे आकर्षण पार्क भी बनाये गये हैं ताकि नये तीर्थयात्री अपने पर्यटन की भूख भी शांत कर सकें।
          यही स्थिति वुंदावन की है। वहां का सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर बांके बिहारी माना जाता रहा था पर बाद में अंग्रेजों का मंदिर भी वही प्रसिद्ध पा गया।  उसके बाद वहां अक्षय पात्र बनाया गया जो कि इस्कॉन ने ही बनाया है।  उसके तत्काल बाद ही बने प्रेम मंदिर ने तो ताजमहल के आकर्षण की समानता कर ली है। अभी वह फीकी ही नहीं हुई कि वहां कुतुबमीनार से बड़ा चंद्रोदय मंदिर बनना प्रारंभ हो गया। एक तरह से वृंदावन में ताजमहल और कुतुबमीनार अब भारतीय धार्मिक रूप धारण कर प्रकट होते दिखेंगे।
अभी नेपाल में भूकंप के दौरान अनेक मंदिर ढह गये पर पशुपतिनाथ का मंदिर बचा रहा यह एक संतोष का विषय है। नेपाल में पर्यटन उद्योग हमेशा ही तीर्थयात्रियेां के सहारे ही चला है मंदिरों के ढहने से वहां रोजगार का संकट पैदा होने वाला है। यह जरूर कहा जाता है कि हिन्दू रूढ़िवादी है पर जहां तक आस्था का प्रश्न है हमारा समाज हमेशा ही नवीन अनुभूतियों के साथ जीने का आदी है जो आमतौर से दूसरे धार्मिक समाजों में नहीं देखा जाता। विकास का अर्थ आंतरिक तथा भौतिक से परिवर्तन होता है।  भौतिकता में गुणात्मक वृद्धि ही विकास कभी पर्याय नहीं मानी जा सकती है। साकार भक्ति हो या निराकार भक्ति दोनों ही भक्त के हार्दिक भाव का प्रमाण होती हैं।  साकार भक्त अगर प्राचीन की अपेक्षा नवीन मूर्तियों और मंदिरों की तरफ आकर्षित होते हैं  उसे आस्था में कमी नहीं कहा जा सकता है।  एक तरफ धार्मिक भाव की संतुष्टि दूसरी तरफ मन का बहलाव दोनों ही लक्ष्य एक साथ पूरा करना बुरा नहीं है। मुख्य बात यह है कि धार्मिक विचाराधारा को परिष्कृत होकर बहते रहना चाहिये। जहां तक भक्ति का प्रश्न है उसका मूल रूप नहीं बदला जा सकता पर अभिव्यक्ति के प्रकार बदल सकते हैं। मन की साधना का सूत्र अटल है पर साधन बदल सकते हैं।  भारतीय योग विद्या में भी परिर्वतन होते रहे है। पतंजलि योग में आसन तथा प्राणायामों की चर्चा नहीं है पर समय के साथ उनके अनेक रूप सामने आते जा रहे हैं। हिन्दू आध्यात्मिक विचाराधारा इसी कारण पूरे विश्व में अधिक वैज्ञानिक मानी जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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