एक फिल्म अभिनेता ने शराब पीकर गाड़ी चलाई जो फुटपाथ पर सो रहे चार लोगों का
कुचल गयी। एक मरा बाकी तीन घायल हो गये। मुकदमा तेरह वर्ष चला और सजा पांच साल
हुई। जमानत पांच घंटे में हो गयी। इस घटना में ऐसा कुछ नहंी है जिस पर अधिक लिखा
जाये पर सामाजिक संदर्भों में इसका महत्व इसलिये अधिक है क्योंकि फिल्म तथा उसमें
काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों का समाज पर जो प्रभाव उसे अनदेखा नहीं किया
जा सकता।
सजा देने वाले न्यायालय और उसके न्यायाधीश इसी देश के हैं। जो अभिनेता की
कार के नीचे दबे वह भी इसी देश के हैं। न्यायाधीशों ने संविधान के अनुसार निर्णय
दिया जिसे हमारी संसद बनाती है। समस्या वहां से प्रारंभ हो गयी जहां उस अभिनेता को
सजा होने पर पूरे फिल्म उद्योग के अन्य अभिनेता और अभिनेत्रियां रुदन करते नज़र
आये। उसके घर सहानुभूति व्यक्त करने गये। इससे भी समस्या नहीं है पर जिस तरह उस
अभिनेता के साथ हुई सहानुभूति सभाओं का प्रचार माध्यमों पर प्रचार हुआ उससे तो यह
लगा कि जैसे सजा देने का निर्णय कोई प्राकृतिक प्रकोप है। अभिनेता ने शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए लोगों को
कुचल डाला-यह न्यायालय ने मान लिया। इस पर
हमारे न्यायालयीन व्यवस्था की प्रशंसा होना चाहिये पर प्रचार के साथ सहानुभूति
अभियान चल रहा है उस अभिनेता के लिये जिसे संविधान के अनुसार अपराधी माना गया।
पर्दे पर जिस तरह खबरे चल रही हैं उससे तो लगता है कि सजा और सहानुभूति के बीच
विज्ञापन का खेल भी चल रहा है।
हमें अभिेनेता और उससे सहानुभूति
रखने वालों से कोई शिकायत नहीं है। परेशान करे वाली बात यह है कि कि फिल्म उद्योग में काम करने वाले अभिनेता और
अभिनेत्रियों का समाज पर प्रभाव है और उनके व्यक्तिगत क्रिया कलापों में भी लोग
रुचि लेते हैं। इस प्रकरण में भारत की
न्यायालयीन व्यवस्था की शुचिता और अभिनेता के गुणवान होने के प्रचार के बीच एक ऐसा
द्वंद्व चलता दिख रहा है जो आश्चर्यचकित करता है।
ऐसा लगता है कि दोनों ही विषय दो प्रथक देशों से संबंधित हैं। अभिनेता को सजा किसी दूसरे देश में हुई है और
यहां शेष अभिनेता अभिनेत्रियां अपने
व्यवसायिक धर्म के निर्वाह के लिये उससे सहानुभूति इस आशय से जताने जा रहे हैं
जैसे कि वह कोई राष्ट्रीय कर्तव्य भी निभा
रहे हों। इन अभिनेता और अभिनेत्रियों को शायद यह अनुमान नहीं है कि उनके इस कार्य
से भारतीय जनमानस में उनकी सोच के विपरीत संदेश जा रहा है। संभव है कि कुछ नाखुश
लोग के हृदय में इन नायक नायिका की भूमिका का अभिनय करने वालों की खलनायक और
खलनायिक की छवि बन रही हो।
एक बात
तय रही है कि हमारे देश में फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों तथा क्रिकेट खिलाड़ियों
की जनमानस में जो छवि है उसका लाभ उनके व्यवसायिक स्वामी उठाते हैं जिनकी शक्ति
बहुत व्यापक है। शायद यही कारण है कि अभिनेता अभिनेत्रियों के साथ क्रिकेट
खिलाड़ियों में यह विश्वास बना रहता है कि उनके सामाजिक स्तर में कभी कमी नहीं
आयेगी इसलिये वह सामान्य जनमानस के विचारों की परवाह न कर वह सब करते हैं जिसकी
अपेक्षा कोई नहीं करता। बहरहाल हमने अनेक लोगों के विचार सुने और तब यह लेख लिखा।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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