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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Thursday, May 18, 2017

विज्ञापनों में भी दिखती है हिन्दूत्व विरुद्ध धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई (War in Adversiment on Hindutv Vs Secularis)

            फिल्मी व टीवी उद्योग के  लोग भले ही दावे करें कि उनके यहां सब सामान्य है पर जानकार लोग मानते हैं कि यह सब दिखावा है।  गैर हिन्दू देशों का पैसा भारतीय मनोरंजन व्यवसाय में आता है इसलिये ही उसमें पीर फकीर संस्कृति की आड़ लेकर भारतीय धर्मो का आकर्षण कम करने वाली कहानियां लिखी जाती हैं। इस पर बहस अलग से कर सकते हैं पर हमें तो यह विज्ञापनों में भी दिखाई देने लगा है।
अभी हाल ही में बाहूबली फिल्म की सफलता ने पूरे विश्व में झंडे गाड़े। हमारे मुंबईया फिल्म के तीन कथित नायकों की-यह धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक माने जाते हैं-सफलता उसके आगे फीकी हो गयी। वैसे में अनेक जानकार यह सवाल उठाते हैं कि फिल्म उद्योग को अक्षयकुमार व अजय देवगन कोई कम कमा कर नहीं देते पर उन्हें सुपर स्टार कहते हुए गैर हिन्दू देशों के पूंजीपतियों से प्रायोजित प्रचार माध्यम उस तरह महत्व नहीं देता। बहरहाल बाहूबली पर पाकिस्तानी प्रचार माध्यमों ने भी रोना रोया-यह अलग बात है कि वहां यह फिल्म भी जमकर चल रही है।  ऐसे में जब धर्मनिरपेक्ष महानायकों की छवि धूमिल हो रही थी तो एक विज्ञापननुमा समाचार एक चैनल में देखा जिसमें दंगल फिल्म की चीन में सफलता की चर्चा की गयी थी और धर्मनिरपेक्ष नायक दिखाया जा रहा था। देखा जाये तो बाहूबली से पहले ही दंगल फिल्म बाज़ार में आयी है। बाहुबली चीन में भी सफल मानी जा रही है। जिस चैनल पर यह समाचानुमा विज्ञापन आया वह धर्मनिरपेक्षता का झंडाबरदार है। ऐसे में दंगल की चीन में सफलता की बात वह कर रहा था तो लगा कि कहीं नि कहीं विज्ञापननुमा समाचारों की भी रचना की जाती है कि धर्मनिरपेक्षता कहीं हिन्दुत्व से पिछड़ न जाये।


Tuesday, May 02, 2017

आम आदमी से परे चल रहे हैं शिखर पुरुष-हिन्दी वैचारिक लेख (comnan man and Very importent parson-HindiThought artifcle)


                                         भारत में जमीन पर रैंगने वाला आम आदमी कला, पत्रकारिता मीडिया राजनीति, धर्म, तथा संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय सभी संगठनों के शिखर पुरुषों के लिये प्रयोक्ता है। इन संगठनों में सक्रिय लोग ी कभी आदमी रहे होते हैं फिर भी जब इन पर विशिष्ट पद होने का अहंकार चढ़ता है। तब उनकी सोच बदल जाती है। वह विशिष्ट सोचते हैं दिखते हैं और बोलना चाहते हैं-उनको अपनी विशिष्टता की अनुभूति तभी होती है किसी को पांव तले कुचलकर निकलते हैं।  वातानुकूलित यंत्रों में विलासिता से सुस्त हुई देह के कारण मस्तिष्क का चिंत्तन कुंद हो जाता हैं। तब वह आम आदमी की सुनना नहीं चाहते और नतीजा यह कि वह जो बोलते हैं वह आम आदमी समझता नहीं है। नतीजा यह कि व्यक्ति निर्माण का कार्य लगभग ठप्प हो गया है। 
                                 संड़कें संकरी रहीं पर वाहन चौड़े हो गये। रास्ते पर लोग टकराने लगे हैं। जंगल जैसी जंग है जहां हर शक्तिशाली पशु कमजोर को खाना चाहता हैं। आमआदमी की औकात प्रयोक्ता जैसे है उसे सृजक तो माना ही नहीं जा सकता। सृजक वही है जो पद, पैसे और प्रतिष्ठा के सहारे शिखर पर बैठा है।  संगठित मीडिया ने अपनी चाटुकारिता से सोशलमीडिया का भी अपहरण कर लिया है। एक गायक का टिवटर विवादास्पद हो सकता है पर किसी आम आदमी की खास टिप्पणी आज तक नहीं दिखाई गयी।  किसी ऐसे व्यक्ति को सोशलमीडिया से पर्दे पर बहस के लिये नहीं लाया गया जिसके पास पद, पैसे और प्रतिष्ठा का शिखर नही है। अगर यकीन न हो तो समाचार चैनलों की बहस देख लें जहां केवल दस या पंद्रह चेहरे ही हैं जो इधर उधर घूमकर अपनी वाक्चातुर्य कला का प्रदर्शन करते हैं-न उनकी तथ्यों पर गहन दृष्टि होती है न ही स्वयं का चिंत्तन होता है।  एक तय प्रारूप में सब चल रहा है। सब कुछ क्रिकेट की तरह फिक्स लगता है।  
                           ऐसे में हम जैसे लोगों के लिये यही उपाय है कि वह अपने सीमित क्षेत्र में ही मौज करते रहें।  अपनी नियंत्रण रेखा स्वयं नहीं दूसरों की ताकत से तय करें। घर से बाहर निकलते ही समझें कि वह पराये देश मे आ गये हैं।  हर जगह ताकतवर लोगों के दलाल बैठे हैं। कहीं दलाल ही ताकतवर हो गये हैं। घर से बाहर जाने के बाद सुरक्षित, सम्मानित और संतोष के साथ लौट आने पर माने कि आपने विदेश यात्रा कर दी। भीड़ में कोई अपना नहीं है और जो सामने है उनसे विवाद में तपना नहीं है।  धर्म, कला, पत्रकारित, राजनीति, समाजसेवा और जनकल्याण के नाम पर शिखर पुरुषों ने हड़प ली है और वह इस तरह वहां विराजे हैं जैसे कि वहां के राजा हों। निराशा के इस वातावरण में भी धन्य है वह आम आदमी जो भगवान भक्ति करते हुए सारे संकट सहजता से झेल लेता है। वह जानता है कि इस धरती पर अप्रत्यक्ष भगवान का ही कब्जा है भले ही प्रत्यक्ष राक्षसों ने इस हड़प रखा है। 

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