भारतीय अध्यात्मिक दृष्टि प्रजा हित के लिये राज्य प्रमुख को किसान से सबक लेना
वैसे हर मनुष्य को अपने आश्रितों की रक्षा के लिये संघर्ष करना चाहिये। उसी तरह राजसी पदों पर कार्य करने वालों को अपनी
कार्यप्रणाली किसानों की तरह ही अपनाना चाहिये जो अपनी फसल के उत्पादन के लिये जमकर
मेहनत करने के बाद भी उसकी रक्षा के लिये प्रयास करते हैं। खेतों में खड़ी फसल कोई पशु न खाये इसके लिये वह
उसे भगा देते हैं। फसल के शत्रु कीड़ोें का नाश करते हैं। राजसी पदों पर कार्य करने वाले लोगों को भी अपने
क्षेत्र की प्रजा की रक्षा के लिये ऐसे ही प्रयास करना चाहिये।
मनुस्मृति में कहा गया है
कि
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यथेद्धरति निदांता कक्ष
धान्यं च रक्षति।
तथा रक्षेन्नृपोराष्ट्रं
हन्याच्च परिपन्विनः।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस प्रकार किसान अपने धन की रक्षा के लिये खरपतवार उखाड़ फैंकता है वैसे ही
राजा को प्रजा के विरोधियों का समूल नाश करना चाहिये।
राजनीति में आजकल
हिंसक प्रयासों से अधिक कूटनीति को भी महत्व दिया जाता है इसलिये राजसी पुरुषों को
ऐसे प्रयास करना चाहिये जिससे अपराधी तथा प्रजाविरोधी तत्व सक्रिय न हों। जो राजसी
पुरुष ऐसा नहीं कर पाते उनकी प्रजा भयंकर संकट में घिर जाती है। हम मध्य एशिया में
जिस तरह के हालत देख रहे हैं उसका यही निष्कर्ष है कि वहां के राजसी पुरुषों ने ऐसा
नहीं किया जिससे अब वहां तबाही का दौर चल रहा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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