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Friday, May 22, 2015

अपनी घोल तो नशा होय-हिन्दी चिंत्तन लेख(apni ghot to nasha hoy-hindi thought article

            अपनी दैनिक जीवन की समस्याओं में हम किसी दूसरे से सहायता की आशा कैसे कर सकते हैं जबकि पता है कि सभी लोग स्वयं के विषयों में फंसे हैं। हम दूसरे से परमार्थी होने की आशा क्यों करते हैं जब कि स्वयं स्वार्थों के दलदल में फंसे है। कोई व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक सिंहासन पर बैठकर समाज का संचालन करे या आसन बिछाकर धरती पर ध्यान करे वह दैहिक निजता का भाव धारण किये ही रहता है। इस देह में ही काम, क्रोध लोभ, लोभ तथा मोह की प्रवृत्ति के साथ ही मन, बुद्धि और अहंकार भी रहता है।  ऐसे में स्त्री हो या पुरुष मानवीय स्वभाव के मूल तत्वों से परे नहीं जा सकता।
            यहां अनेक लोग सहायता का वादा करते हैं। अनेक लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने जिंदगी में शायद ही किसी का परोपकार किया हो पर इस विषय पर कल्पित कहानियां दूसरों को सुनाकर प्रचार करते हैं। यह अलग बात है कि वह स्वयं चाहे आत्ममुग्ध हों पर अन्य लोग उन पर विश्वास न करते।  सामाजिक क्षेत्र में लोग बेसहारों, गरीबों, तथा बीमारों की मदद, धार्मिक क्षेत्र में स्वर्ग और मुक्ति के साथ ही  आर्थिक क्षेत्र में दान करने के दावे करने वाले बहुत ही कथित चालाक लोग  मिल जाते हैं। आजकल तो प्रचार का युग है तो टीवी चैनल और अखबारों में विज्ञापन भी किये जाते हैं। इन पर यकीन करना इसलिये कठिन होता है क्योंकि हमने अपने जीवन में समाज को नैतिक पतन, आर्थिक विषमता तथा वैचारिक वैमनस्य की तरफ आगे बढ़ते ही देखा है। आज से तीस  साल पहले जो  वातावरण  था उससे अब अधिक विषाक्त हो गया है। भविष्य में भी अधिक गिरावट की आशंकायें बनी रहती हैं। ऐसे में प्रचार माध्यमों में आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक शिखर पुरुषों के नायकत्व पर प्रश्न उठता ही है।  संकट विश्वास का है और वह किसी पर करना कठिन हो रहा है।
            ऐसे में निराशा से बचने का एक ही उपाय है कि अपनी घोल तो नशा होय। व्यसनों से मन शांत करने की बजाय योग साधना, भक्ति तथा मौन बेहतर हथियार बनाया जाये तो घर में ही स्वर्ग और जागते हुए मोक्ष मिल सकता है। विषयों से परे हटना नहीं है  आसक्ति परे रखनी ही है। आसक्ति रहित होना ही मोक्ष है। योग साधना के दौरान आसन, प्राणायाम, ध्यान और मंत्रजाप से अपनी सक्रियता का एक मनोरंजक स्थिति प्रदान करती है तब किसी दूसरे के दावे या वादे के प्रभाव से स्वतः बचा जा सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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