समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

Sunday, June 11, 2017

राष्ट्रवादियों में अब अवसाद बढ़ता दिख रहा हे-हिन्दी संपादकीय

                             हमने यह लेख एक राष्ट्रवादी का लेख पढ़कर लिखा है जिसमें वह उदित भारत के एक मंत्री को महत्व न मिलने से दुःखी हैं। उन्हें लगता है कि वह होते तो सरकार का रूप अलग होता। हमारा मानना है कि वह भी एक नकारा मंत्री था जो पूंजीपतियों के हित में काम करता था। वैसे भी मेंत्री नहीं वरन् अधिकारी काम करते हैं। सामान्य राष्ट्रवादियों में यह भ्रम है कि उनके वरिष्ठ ज्यादा बौद्धिक हैं इसलिये कुशल प्रबंधक भी हैं। 
ओलंपिक में पचास सौ पदक ले लिये होते तो मान लेते कि मांस खाने से शक्ति व पराक्रम मिलता है। मांस खाने की वकालत करने का हक केवल रूस, चीन, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका जर्मनी, फ्रांस तथा आस्ट्रेलिया जैसे देशों के विद्वानों को है। हमारे देश की हालत ओलंपिक में क्या है सभी जानते हैं? यह मांस खाने वाले वहां कौन तीर मारते हैं जो यहां जानवारों को मरवाकर पार्टियां मना रहे हैं। इनके अनुसार तो यह धरती केवल मनुष्यो के लिये जबकि हमारा दर्शन मानता है कि यह सभी जीवों के लिये है।  जीवहत्या पाप है चाहे वह कुत्ते की हो या गाय की।
                        अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ही देश की मीडिया पर आरोप लगाया है कि वह असली समाचार छिपाकर फर्जी  दिखा रहा है।  हम अपने देश के मीडिया का चालचलन देखें तो वह अमेरिका राह पर ही चलता है। जिस तरह गोरक्षकों की गुंडागर्दी, सामूहिक मांसभक्षण मेला या महिलाओं के प्रति अपराध के वीडियो मीडिया पर लाकर पूरी सरकार वह समाज पर छींटाकशी की जाती है उससे संदेह भी होता हैं। अभी एक लड़की के साथ बदतमीजी हुई।  अपराधियों ने ही वीडियो अपलोड किया। मीडिया में आया तो पुलिस सक्रिय हुई। अपराधी पकड़े जा रहे हैं।  कुछ दिन तक लोगों को याद रहेगा फिर भूल जायेंगे।  यह देखने फिर कौन जा रहा है कि वहां अब क्या हो रहा है? अपराधी स्वयं वीडियो अपलोड कर रहे हैं।  अभी दक्षिण में कुछ जगह मांसभक्षण मेले लगे।  मीडिया ऐसे बता रहा था जैसे कि पूरे दक्षिण में यह हो रहा है-सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह कि यह तक बड़ी शिद्दत से दिया जा रहा था कि हिन्दू भी गौमांस खाते है।  गोरक्षकों की गुंडागदी के र्वीडयो तो इस तरह दिखते हैं जैसे कि स्वयं उन्होंने मीडिया के लिये प्रायोजित सेवा की है।  यह कैसे संभव है कि गोरक्षक गुंडागदी कर रहे हों और वह किसी दूसरे को इतने आराम से फोटो खींचने दें।  फिर दूसरा शक यह भी है कि दिन में एक दो घटनायें ही ऐसी आती है जिनका वीडियो होता है। ऐसी खबर क्यों नही आती जिसका वीडिया न बना हो। मतलब यह कि कैमरा सामने होने पर ही यह घटनायें होती हैं।  कभी कभी तो लगता है कि आपसी मारपीट की खबर भी गौरक्षकों से जोड़ दी जाती है।  ऐसेक में शक होता है कि कहीं योजनाबद्ध ढंग से खबरें बनवायी तो नहीं जा रही ताकि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, महंगाई तथा अपराधों पर कम ही चर्चा हो । अगर हो तो सतही तरह से।
                                 एक भारतीय पूंजीपति की लाहौर यात्रा पर भारत व पाकिस्तान के प्रचार माध्यमों में बहुत चर्चा है-कोई इसे व्यक्त्रिगत तो कोई इसे पर्दे के पीछे की राजनीति मान रहा है। हमारा सबसे अलग विचार है-इस विचार को कार्ल मार्क्स से प्रभावित कतई न समझें।  हमें तो ऐसा लगता है कि विश्व के सभी राष्ट्र अब पूंजीपतियों के क्लब बन गये हैं। जिस तरह हमें यहां मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई, दिल्ली तथा अन्य बड़े शहरों के नामो पर क्रिकेट टीमें बनाकर क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में लोगों की भावनाओं को उबारा जाता है यही स्थिति अब राष्ट्र के नामों पर भी हो रही है। सीधी बात कहें तो राष्ट्रवाद के नाम पर स्वार्थवाद चल रहा है। हमने देखा कि अमेरिका में राष्ट्रवाद के नारे पर आये ट्रम्प अब पुराने मार्ग पर ही चल दिये।  भारत के जिस पूंजीपति ने लाहौर की यात्रा की उस पर पाक मीडिया यह आपत्ति उठा रहा है कि उसने अपने वीजा नियमों से अलग जाकर उस जगह जाकर पाक प्रधानमंत्री शरीफ  से मुलाकत की जहां उन्हें अनुमति नहीं दी। पाक मीडिया तो अपने ही प्रधानमंत्री पर नियम तोड़ने कर आरोप लगा रहा है।  हमें इस तरह की घटनाओं पर आश्चर्य नहीं है।  दुनियां में कंपनी नाम के दैत्य ने सभी राष्ट्रों को  क्लब बना लिया है।  राष्ट्रप्रमुखों ने इस कपंनी दैत्यों से मित्रता की है या वह उसकी नौकरी करते हैं यह अलग से बहस का विषय है इतना तय है कि तानाशाह शी जिनपिंग हो या पुतिन वह भी इन पूंजीपतियों में प्रभाव या दबाव में है।  यही कारण है कि हम कहते हैं कि तीसरे विश्वयुद्ध की संभावना नहीं है। सुविधाभोगी कभी युद्ध नहीं कर सकते अलबत्ता आमलोगों को मरवाकर अपना शौक जरूर पूरा करते हैं।

राष्ट्रवादियों को तो लोहा तब मानते जब भारत पाक के एक समूह में होने पर सवाल उठाते (Nationalism and India-HindiArticle)


                          किसी भी अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में यह जरूरी नहीं कि भारत का पाकिस्तान से मुकाबला हो। दरअसल नाकआउट दौर में पहुंचने से पहले लगी मैच होते है जिसमें सदस्य देशों के वरीयता सूची के  आधार पर होता है। हॉकी में भारत सदैव दूसरे समूह में रहता था और दोनों टीमें सेमीफायनल फायनल में टकराती थीं। कम से कम तीन विश्व क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत पाकिस्तान आपस में सामने नहीं खेले।  अब हालत यह है कि हर क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत पाकिस्तान के एक ही समूह में रहते हैं। सच बात तो यह है कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिता में सबसे ज्यादा राजस्व भारत पाक मैच से मिलता है। लगता है कि टीम की वरीयतायें छोड़कर आयोजक अधिक राजस्व कमाने के लिये भारत पाक मैच अनिवार्य बनाते हैं। अगर पाकिस्तान या भारत अलग अलग समूहों में रहें तो इसकी संभावना रहती है कि कोई एक या  दोनों ही नाकआउट दौर में पहुंचे ही नहीं और राजस्व की हानि हो जाये। अगर राष्ट्रवादी यह पूछते कि आखिर भारत पाकिस्तान एक ही समूह में कैसे रखे जाते हैं तो बात जमती भी।  दरअसल राष्ट्रवादियों के शिखर पुरुष कभी भी अपने अनुयायियों को तार्किक बनते देखना नहीं चाहते क्यों तब राजकाज के संबंध में कठिन सवाल वह उठाने लगेंगे जो कि विरोधियों को भी रास आयेंगे। हम राष्ट्रवादियों  को समझाते रहें हैं कि क्रिकेट खेल नहीं व्यापार है जिसमें पूंजीपति और सट्टेबाज साथ साथ मिले हैं। देशभक्ति का रस इसमें मिलाया जाता है ताकि लोग भ्रम में रहें।
                    कल हमने मैचा देखा पर परिणाम से अधिक हमारी रुचि खिलाड़ियों के हावभाव में ही थी-पाकिस्तान के पुराने दिग्गजों ने पहले ही कह  दिया था कि उनके कम से तीन खिलाड़ी चमत्कारिक प्रदर्शन करें तभी भारत से जीत पायेंगे पर इसकी संभावना नगण्य है। कल भारतीय खिलाड़ियों के हावभाव ऐसे लग रहे थे जैसे कि सेठ हों तो पाकिस्तानी रोजंदारी वाले मजदूर दिख रहे थे। न उन पर हार के तनाव का भय था न भारतीयों से परंपरागत प्रतिद्वंद्वता वाला भाव था। भारत के अधिकतर खिलाड़ी करोड़ों में खेलने वाले हैं जबकि पाकिस्तानी अब रूखे सूखे से ही काम चलाते नज़र आ रहे थे। अब तो स्थिति यह है कि बीसीसीआई सरकार से दबाव डालकर कहीं पाकिस्तान से द्विपक्षीय श्रृंखला खेलना भी चाहे तो अनेक बड़े खिलाड़ी यह कहकर अलग हो सकते हैं कि इतनी स्तरहीन टीम से हम नहीं खेलेंगे तब दोयम दर्जे की टीम उसके यहां भेजी जायेगी-जैसा जिम्मबाब्बे व वेस्टइंडीज में भेजी जाती है।
जीन्यूज को अतिराष्ट्रवाद से बचना चाहिये।
            जी न्यूज चैनल अतिराष्ट्रवाद की तरफ बढ़ता जा रहा है जो कि बोरियत पैदा करता है। बात पाकिस्तान से चैंपियंस ट्राफी में खेलने की है। भारत ने तय किया है कि वह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय क्रिकेट श्रृखला नहीं खेलेगा।  ऐसा पहले भी कई बार हुआ पर ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पाकिस्तान से भारत खेलता है। जीन्यूज अब चैंपियंस ट्राफी में चाहता है कि भारत पाकिस्तान से न खेले और उसे दो अंक ले जाने दे। हम सदा ही पाकिस्तान से द्विपक्षीय श्रृंखला के विरोधी हैं पर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में उससे मुकाबले रोकने का समर्थन नहीं करते।  हमारी राय में यह अतिराष्ट्रवाद है जो सोच को कुंद कर देता है।
हवाला पर फौजदारी कार्यवाही के बिना कहीं किसी भी समस्या का हल मिलना संभव नहीं है। यह समन वमन से कुछ नहीं होने वाला!  नोटबंदी के बाद सब जगह अपराध लगभग थम गये थे पर जैसे ही बाज़ार में पैसा आ गया। सब कुछ वैसा ही हो गया।  हमें तो ऐसा लग रहा है कि इस देश में हवाला कारोबारी ही सबसे ज्यादा प्रभावी है। वह इधर भी खिलाते हैं उधर भी खिलाते हैं।  इसलिये न वह पकड़े जाते हैं न उनके ग्राहक!  खालीपीली टीवी पर बहसें देखते रहो।

अध्यात्मिक पत्रिकायें

वर्डप्रेस की संबद्ध पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकायें