कर्म तीन प्रकार होता है-सात्विक, राजसी और तामसी। हम यहां राजसी कर्म
फल और गुण की चर्चा करेंगे। अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह तथा काम के वशीभूत
ही राजसी कर्म होते हैं। अतः ज्ञानी लोग कभी भी राजसी कर्म में तत्पर लोगों से
सात्विकता की आशा नहीं करते। आज के संदर्भ में देखा जाये तो प्रचार माध्यमों में
राजसी कर्म में स्थित लोग विज्ञापन के माध्यम से सात्विकता का प्रचार करते हैं पर
उनके इस जाल को ज्ञानी समझते हैं।
पंचसितारा सुविधाओं से संपन्न भवनों में रहने वाले लोग सामान्य जनमानस के
हमदर्द बनते हैं। उनके दर्द पर अनेक
प्रकार की संवदेना जताते हैं। सभी कागज पर स्वर्ग बनाते हैं पर जमीन की
वास्तविकता पर उनका ध्यान नहीं होता। हमने
देखा है कि अनेक प्रकार के नारे लगाने के साथ ही वादे भी किये जाते हैं पर उनके
पांव कभी जमीन पर नहीं आते।
इसलिये जिनका हमसे स्वार्थ निकलने वाला हो उनके वादे पर कभी यकीन नहीं करना
चाहिये। सात्विकता का सिद्धांत तो यह है कि निष्काम कर्म करते हुए उनका मतलब निकल
जाने दें पर उनसे कोई अपेक्षा नहीं करे। आजकल के भौतिक युग में संवेदनाओं की परवाह
करने वाले बहुत कम लोग हैं पर उन पर अफसोस करना भी ठीक नहीं है। सभी लोगों ने अपनी बुद्धि पत्थर, लोहे, प्लास्टिक और कांच के
रंगीन ढांचों पर ही विचार लगा दी है। मन में
इतना भटकाव है कि एक चीज के पीछे मनुष्य पड़ता है तो उसे पाकर अभी दम ही ले पाता है
कि फिर दूसरी पाने की इच्छा जाग्रत होती है।
जिन लोगों को लगता है कि उन्हें सात्विकता का मार्ग अपनाना ठीक है उन्हें
सबसे पहले निष्काम कर्म का सिद्धांत अपनाना चाहिये। किसी का काम करते समय उससे कोई अपेक्षा का भाव
नहीं रखना चाहिये चाहे भले ही वह कितने भी वादे या दावा करे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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