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Saturday, August 15, 2015

सांसरिक विषय तथा अध्यात्मिक ज्ञान के सिद्धांत नहीं बदलते(sansrik vishay tathaa adhyatmik gyan ke siddhant nahin badalte)


                                   क्या कंप्यूटर पर काम करने से मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है? पड़ता होगा हमें क्या? पिछले तेरह वर्ष से कंप्यूटर पर काम करते हुए हो गये पर हमें ऐसा नहीं लगा कि कोई मस्तिष्क पर हानि हो रही हो।  इसका कारण यह भी हो सकता है कि हमने कंप्यूटर पर सतत आंखें गढ़ाने का काम नहीं किया।  रचनात्मक काम करने वाले फालतू की साईटों पर दिमाग नहीं खपाते।  दूसरा यह कि जब हम कंप्यूटर पर पर टकण करते हैं तो मस्तिष्क शब्द चिंत्तन पर भी रहता है इसलिये आंखें पर्दे पर कम ही देखती हैं।  बहरहाल हमारा सवाल यह है कि कंपनियों के बासी फूड खाने से ज्यादा कंप्यूटर पर काम करना खतरनाक हैलोगों ने आजकल खाने पीने के साथ ही रहन सहन  का तरीका ही बदल दिया है जिससे देह में स्वास्थ्य का स्तर कम हो गया है जिसका मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव पड़ना ही है ऐसे में कंप्यूटर पर काम करते हुए वह बढ़ भी सकता है।
                                   हमें कंप्यूटर से ज्यादा थकाने का काम तो स्मार्ट फोन से जूझना लगता है।  कंप्यूटर पर दोनों हाथों से काम करते हुए इतना दबाव नहीं रहता जितना स्मार्टफोन पर होता है।  इधर समस्यायें भी आ रही हैं। कुछ रचनात्मक मित्र ईमेल पर संदेश देते थे अब वह कहते हैं कि स्मार्टफोन पर व्हाटसअप पर देखो।  उनको तो बस फोटो भेजने हैं पर उनको देखना हमें कष्टप्रद लगता है।  इधर समाज में शिकायत है कि हम कंप्यूटर पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और मनुष्य जाति के प्रति उपेक्षा का भाव हो गया है।  अनेक बार हम इससे हटकर सामाजिकता भी करने चले जाते हैं पर इधर योग साधना और श्रीगीता के अभ्यास ने हमें इतना एकाकी बना दिया है कि निरर्थक विषयों पर चर्चा करना अजीब लगता है। अनेक बार तो लगता है कि हमने सामूहिक वार्तालाप में समय व्यर्थ ही बरबाद किया। इससे तो अच्छा होता कि कंप्यूटर पर कविता लिख कर अपने रचनाधर्मी होने का भ्रम ही पाल लेते।  हालांकि जब हमें व्यंग्य की तलाश होती है तो वह समाज में सामूहिक जगह पर ही मिलता है। एकांत में चिंत्तन से निकले निष्कर्ष का प्रयोग भी भीड़ में करना अच्छा रहता है।
                                   हमने ज्ञान की साधना से यह निष्कर्ष तो निकाला ही है कि सांसरिक व्यवहार में चेहरे, रिश्ते और विषय समय के हिसाब से जरूर बदलते पर  हमेशा प्रकृति के निश्चित सिद्धांतों के अनुसार ही हमारे सामने वह आते हैं।  संसार का मूल रूप वही है जो हजारों वर्ष पहले था।  सांसरिक विषयों के सिद्धांत उसी तरह नहीं बदल सकते जैसे अध्यात्मिक ज्ञान के नहीं बदले।  जो दोनों विषयों के सिद्धांतों को समझ लेगा वह हमेशा ही आनंद में रहेगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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