किसी जाति, भाषा या धर्म के लोगों को सरकारी सेवाओें में आरक्षण दिलाने के नाम पर
आंदोलनकारी लोग कभी अपने अपने समाज के नेताओं से यह पूछें कि ‘क्या वास्तव में देश के
सरकारी क्षेत्र उनके लिये नौकरियां कितनी
हैं? सरकार में नौकरियों पहले की तरह मिलना क्या फिर पहले की तरह तेजी से होंगी? क्या सभी लोगों को
नौकरी मिल जायेगी।
सच बात यह है कि सरकारी क्षेत्र के हिस्से का बहुत काम निजी क्षेत्र भी कर
रहा है इसलिये स्थाई कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है। सरकारी पद पहले की अपेक्षा कम होते जा रहे हैं।
इस कमी का प्रभाव अनारक्षित तथा आरक्षित दोनों पदों पर समान रूप से हो रहा
है। ऐसे में अनेक जातीय नेता अपने समुदायों
को आरक्षण का सपना दिखाकर धोखा दे रहे हैं।
समस्या यह है कि सरकारी कर्मचारियों के बारे में लोगों की धारणायें इस तरह
की है उनकी बात कोई सुनता नहीं। पद कम
होने के बारे में वह क्या सोचते हैं यह न कोई उनसे पूछता है वह बता पाते है। यह सवाल
सभी करते भी हैं कि सरकारी पद कम हो रहे हैं तब इस तरह के आरक्षण आंदोलन का मतलब क्या है?
हैरानी की बात है कि अनेक आंदोलनकारी नेता अपनी तुलना भगतसिंह से करते
है। कमाल है गुंलामी (नौकरी) में भीख के
अधिकार (आरक्षण) जैसी मांग और अपनी तुलना भगतसिंह से कर रहे हैं। भारत में सभी
समुदायों के लोग शादी के समय स्वयं को सभ्रांत कहते हुए नहीं थकते और मौका पड़ते ही स्वयं को पिछड़ा बताने लगते
हैं।
हमारा मानना है कि अगर देश का विकास चाहते हैं तो सरकारी सेवाओं में
व्याप्त अकुशल प्रबंध की समस्या से निजात के लिय में कुशलता का आरक्षण होना चाहिये।
राज्य प्रबंध जनोन्मुखी होने के साथ दिखना भी चाहिये वरना जातीय भाषाई तथा धार्मिक
समूहों के नेता जनअसंतोष का लाभ उठाकर उसे संकट में डालते हैं। राज्य प्रबंध की
अलोकप्रियता का लाभ उठाने के लिये जातीय आरक्षण की बात कर चुनावी राजनीति का गणित
बनाने वाले नेता उग आते हैं। जातीय आरक्षण आंदोलन जनमानस का ध्यान अन्य समस्याओं
से बांटने के लिये प्रायोजित किये लगते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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