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Monday, July 20, 2015

पेशेवर बुद्धिमान श्रीगीता से कतराते हैं-हिन्दी चिंत्तन लेख(peshewar buddhiman shrigeeta se katrate hain-hindi thought article)

                              एक मनोरोगी और शराबी 24 वर्षीय हत्यारे ने छह वर्षों में 14-15 बच्चों की हत्या कर उनसे दुष्कर्म किया। अब पकड़ा गया। इस पर देश भर के मनोवैज्ञानिक, अपराध शास्त्री तथा समाज के जानकार बहस करते नज़र आ रहे हैं।  बताया जाता है कि पुलिस ने एक बार उसे पकड़ा भी था पर वह जमानत पर छूट गया।  उस पर भी तमाम तर्क दिये जा रहे हैं। इस बहस पर अगर श्रीमद्भागवत गीता के संदेशों के आधार पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि कोई यह आज  तक इस तथ्य को स्वीकर  नहीं कर पाया कि इस संसार में आसुरी तथा दैवीय प्रकृत्ति के लोग हमेशा ही विद्यमान रहेंगे।  अपनी प्रकृत्ति का कोई भी मनुष्य उल्लंघन नहीं कर सकता।  एक बार अगर किसी के बारे में यह पता लग जाये कि वह आसुरी प्रकृत्ति का हो तो उसे कैसे रोका जाये यह तो बहस का विषय हो सकता है-क्योंकि आज के सभ्य विश्व समाज के कानून मानवाधिकारों का भ्रम भी पालते हैं-पर मनोविज्ञान और समाज की दृष्टि से इसमें कुछ अधिक नहीं कहा जा सकता।
                              किसी भी प्रकार की विषय पर व्यवसायिक बहस लंबी जारी रखनी होती पर  श्रीमद्भागवत गीता का इकलौता के तर्क उसे रोक देगा।  बहसें प्रायोजित और विद्वान पेशेवर होते हैं उन्हें लंबी बहस खींचकर प्रचार माध्यमों का विज्ञापन समय पास करने के लिये तर्क से अधिक कुतर्क देते हैं। ।  अगर कोई श्रीमद्भागवत गीता का तर्क देगा तो फिर अंग्रेजी पद्धति से शिक्षित समाज उसे पौगापंथी कहकर ठुकरा देगा। यही कारण है कि व्यवसायिक अभिव्यक्ति में लगे संस्थान श्रीमद्भागवत गीता से दूर  भागते हैं क्योंकि तब सांसरिक विषयों में भी तर्क वितर्क की गुंजायश नहीं रह जाती जो समय पास करने के लिये जरूरी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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