एक टीवी चैनल गंगा की स्वच्छता को लेकर अभियान चला रहा है। उसके कार्यक्रम में कुछ ऐसे कथित श्रद्धालू
दिखाये गये जो नदी की सीढ़ियों पर खड़े होक साबुन लगाकर कपड़े धो रहे थे। एक व्यक्ति
उन श्रद्धालुओं को ऐसा करने से रोक रहा है पर वह जैसे सुन ही नहीं रहे। ढोंग इसत रह कर रहे थे जैसे कि समाधिस्थ हों।
एक कथित श्रद्धालु तो नदी में ही साबुन लगाकर नहा रहा था। कहने पर वह भी नहीं सुन
रहा था। धर्म के नाम पुण्य कमाने का यह
स्वार्थी रूप शर्मिंदा करने वाला है। हम यहां एक बात बता दें कि नदियों में नहाने
पर पुण्य कमाने की चर्चा तो हमारी जनश्रृतियों में है पर यह साबुन लगाना की बात
कहीं न कही गयी है। इसके विपरीत स्वच्छता
को भगवान की पूजा का एक महत्वपूर्ण भाग माना गया है। आमतौर से पहले शरीर की मिट्टी हटाने के लिये
प्राकृत्तिक चीजें उपयोग में लायी जाती थीं,
पर आजकल साबुन प्रचलन में आ गया है इसलिये कथित श्रद्धालु नये जमाने के
अनुकरण के साथ पुरानी पंरपराओं को निभा कर विश्वास को अंधविश्वास में बदल रहे हैं।
इस नदियों को गंदा करना ही हमारी दृष्टि से भारतीय धर्म से द्रोह करने जैसा
है जो कि किसी पूजा से पहले ही अंदर और बाहरी शुद्धता पर जोर देता है। हमारी राय
से ज्ञानी श्रद्धालुओं जो इन नदियों पर नहाने जाते हैं वह न स्वयं ही नदियों में
विसर्जित करने से बचें वरन् दूसरों के करने पर उन्हें दृढ़ता पूर्वक रोकें। अपने आसपास ही खड़े अपने जैसे लोगों से आव्हान
करें कि वह भी उनके साथ स्वर मिलायें। नदियों को स्वच्छ रखने का सबसे पहला दायित्व
तो भारतीय धर्म के श्रद्धालुओं का है यह हम मानते हैं। नदियां स्वच्छ होंगी तो जल
पवित्र होगा। जल की पवित्रता ही जीवन में सुख का भाव ला सकती है। हमें यह नहीं
भूलना चाहिये कि अन्न जल का मनुष्य जीवन पर बहुत प्रभाव रहता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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