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Thursday, July 30, 2015

दैहिक गुरु न मिले तो श्रीमद्भागवत् गीता का शिष्य की तरह अध्ययन करें-गुरूपूर्णिमा पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख(daihik guru na mile to shrimadbhagwat geeta ka shishya ki tarah adhyayan karen-A Special hindi thought article)


     भारत सहित पूरे विश्व के अनेक देशों में रहने वाले भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से संबद्ध सभी विचाराधाराओं के लोग  31 जुलाई 2015 को गुरूपूर्णिमा का पर्व अत्यंत उत्साह से मनायेंगे। भारतीय धार्मिक विचाराधाराओं में गुरु की महिमा अत्यंत बताने के  साथ ही उसकी योग्यता का भी व्यापक आधार स्थापित किया गया है। केवल देह का आकर्षण, आश्रम की विशालता तथा भारी शिष्य समूह देखकर किसी को गुरू नहीं बनाना चाहिये।  आजकल हम देख रहे हैं कि जिन गुरुओं के पास धन संपदा के साथ ही प्रचार के लिये भारी साधन हैं वह आधुनिक तकनीकी के सहारे शिष्य बना रहे हैं। इतना ही नहीं अब तो आधुनिक तकनीकी से ज्ञान हर जगह ऐसे पहुंचाया जा रहा है जैसे कि वह कोई पकड़कर जमा करने की चीज हो।  इतना ही नहीं आधुनिक यंत्रों से लोगों के मन मस्तिष्क पर भी इतना बुरा प्रभाव हुआ है कि लोग ज्ञान पढ़ने, सुनने और कहने से अधिक तक भी सीमित मानते हैं।

संत कबीर दास कहते हैं कि

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गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खांहि।।
                              हिन्दी में भावार्थ-जिन्होंने देह का आकर्षण  देखकर किसी को गुरू बनाया है वह परमात्मा का चिंत्तन सहजता से नहीं कर सकते। बार बार संसार के विषयों में जाकर फंसते हैं
जा गुरु ते भ्रम न मिटै, भ्रान्ति न जिवकी जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाव।।
                              हिन्दी में भावार्थ- जिसे गुरु से सांसरिक विषयों के प्रति मन में बैठा भ्रम न मिटे न ही भक्ति के प्रति फैली भ्रांति मिटे वह गुरु झूठा ही समझें। उसे त्यागने में देरी नहीं करना चाहिये।
         तत्व ज्ञानी होने का आशय यह कदािप नहीं है कि आदमी हर विषय से सन्यास लेकर चुप बैठ जाये।  संसार के भौतिक तथा अध्यात्मिक दोनेां तत्वों का जानना ही ज्ञान है।  भौतिक तत्व की नश्वरता और अध्यात्मिक तत्व की अमरता को जो समझ ले वही तत्व ज्ञानी है। गुरु का मतलब यह भी कदापि नहीं है कि कोई देहधारी हो वरन् ग्रंथ या सामूहिक सत्संग भी हो सकता है जहां से ज्ञान मिले। हमारे जीवन में भौतिक तथा अध्यात्मिक तत्व दोनों का ही महत्व है पर ज्ञान के अभाव में लोग भौतिकता को ही स
सत्य समझते हैं। यहां तक कि उनके गुरु भी उनका भ्रम दूर नहीं कर पाते।
                              बहरहाल गुरुपूर्णिमा का पर्व अत्यंत प्रसन्नता देने वाला है। कोई दैहिक गुरू न हो तो श्रीमद्भागवत गीता का एक शिष्य की तरह अध्ययन करना चाहिये।  पढ़ते और समझते ज्ञान आ ही जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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