हमारे देश में धर्म के नाम पर अनेक प्रकार के भ्रम फैलाये गये हैं। खासतौर से
स्वर्ग और मोक्ष के नाम पर ऐसे प्रचारित किये गये हैं जैसे वह देह त्यागने के बाद ही प्राप्त होते हैें। श्रीमद्भागवतगीता के संदेशों का सीधी अर्थ समझें
तो यही है कि जब तक देह है तभी तक इंसान अपने जीवन में स्वर्ग तथा मोक्ष की स्थिति
प्राप्त कर सकता है। देह के बाद कोई जीवन है,
इसे हमारा अध्यात्मिक दर्शन मनुष्य की सोच पर छोड़ता है।
अगर माने तो ठीक न माने तो भी ठीक पर उसे अपनी इस देह में स्थित तत्वों को बेहतर उपयोग
करने के लिये योग तथा भक्ति के माध्यम से प्रयास करने चाहिये-यही हमारे अध्यात्मिक
दर्शन का मानना है।
अष्टावक्र गीता में कहा गया है कि-------------मोक्षस्य न हि वासीऽस्ति न ग्राम्यान्तरमेव वा।अज्ञानहृदयग्रन्थिनाशो मोक्ष इति स्मृतः।।हिन्दी में भावार्थ-मोक्ष का किसी लोक, गृह या ग्राम में निवास नहीं है किन्तु अज्ञानरूपी हृदयग्रंथि का नाश मोक्ष कहा गया है।
जिस व्यक्ति को अपना जीवन सहजता, सरलता और आनंद से बिताना हो वह विषयों से वहीं तक संपर्क जहां तक उसकी दैहिक
आवश्यकता पूरी होती है। उससे अधिक चिंत्तन
करने पर उसे कोई लाभ नहीं होता। अगर अपनी आवश्यकताआयें
सीमित रखें तथा अन्य लोगों से ईर्ष्या न करें तो स्वर्ग का आभास इस धरती पर ही किया
जा सकता है। यही स्थिति मोक्ष की भी है। जब
मनुष्य संसार के विषयों से उदासीन होकर ध्यान या भक्ति में लीन में होने मोक्ष की स्थिति
प्राप्त कर लेता है। सीधी बात कहें तो लोक
मेें देह रहते ही स्वर्ग तथा मोक्ष की स्थिति प्राप्त की जाती है-परलोक की बात कोई
नहीं जानता।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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